कुछ ने बिना लिस्ट आए खरीद लिया नामांकन फार्म … तो कुछ को पता ही नही कि कौन लडेगा चुनाव ?..

बलरामपुर..(कृष्णमोहन कुमार)…जिले में सामरी और रामानुजगंज दो विधानसभा सीट के अलावा पडोसी जिले के प्रतापपुर विधानसभा का भी कुछ क्षेत्र आता है.. इन सीटो मे सामरी और प्रतापपुर विधानसभा सीटों पर भाजपा ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है. लेकिन जिले की रामानुजगंज सीट के लिए भाजपा आलाकमान ने अभी तक कोई फैसला नही लिया है. वैसे कांग्रेस सीट बंटवारे मे भाजपा से भी पीछे है. और अभी तक कांग्रेस की किसी सीट के लिए प्रत्याशियो की घोषणा नही की हैं. लेकिन जिले की दोनों सीटों पर कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार ने कल नामांकन पत्र खरीद लिया है.

रामानुजगंज सीट वर्ष 2008 में हुए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी.. और इस क्षेत्र में लगातार भाजपा  की मजबूत पकड़ रही थी ..लिहाजा इस सीट से भाजपा के कद्दावर नेता रामविचार नेताम विधायक रहे है..और दो बार छत्तीसगढ सरकार मे मंत्री रहते हुए रामविचार नेताम ने सूबे के कई बड़े और अहम मंत्रालयों की कमान सम्हाली थी . पर वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के रामविचार नेताम कांग्रेस के बार बार चुनाव लडने वाले बृहस्पत सिह से आखिरकार 30 हजार मतों के अंतर से पराजित हो गए . वैसे इन दोनो दलो के प्रत्याशी के अलावा नोटा के विकल्प का असर ना के बराबर ही रहा था..

वही इस बार का चुनाव दिलचस्प होने के आसार हैं . क्योकि रामानुजगंज आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है . यहां खरवार और खैरवार के साथ ही नगेशिया समुदाय के लोगो की बहुलता है. तथा मौजूदा विधायक बृहस्पत सिह भी खरवार समुदाय से आते है. यही नही बृहस्पत सिंह ने चुनावी साल में अपना अस्तित्व टटोलने और क्षेत्र में अपनी पकड़ का अंदाज लगाने प्रचार -प्रसार का कार्य तेज कर दिया था. वैसे फिलहाल उन्हे कांग्रेस से टिकट तो नही मिला है. लेकिन उनका नाम लगभग तय माना जा रहा है.

इस सीट से भाजपा की ओर से मौजूदा दौर में राज्यसभा सांसद और भाजपा आदिम जाति जनजाति मोर्चा के अध्यक्ष रामविचार नेताम प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं. क्योकि उनके अलावा भाजपा के पास यहां कोई बेहतर विकल्प नहीं है. पर ना जाने किस समीकरण के काऱण पार्टी ने अब तक इनके नाम पर मुहर नही लगाई है. जबकि कांग्रेस ने पहले कई सीटिंग एमएलए के टिकट काटने के आसार के बीच बृहस्पत सिह को चुनाव की तैयारी करने के संकेत पहले ही दे दिए थे. तो देखना है कि आखिर मुकाबला दोनो पुराने नेताओ के बीच होता है. या चेहरे बदल जाते हैं.