सतना: मामा शिवराज के राज मे भिक्षा के भरोसे संस्कृत की शिक्षा चल रही है.. संस्कृति और संस्कृत के साथ खिलवाड़ होरहा है.. जिहां हम बात कर रहे सतना जिले के एक ऐसी शासकीय संस्था की जहां के गरीब बच्चे आज भी आधुनिक सुविधा के लिए मुह बाए खडे हैं… जहाँ एक ओर वर्तमान सरकारें संस्कृत शिक्षा को लेकर बड़े बड़े दावे करती है वही एक ऐसा महाविधालय भी है… जहाँ की माली हालत देख कर ये तमाम दावे ढकोसले साबित हो रहे… मामला सतना जिले के खजुरीताल गांव मे स्थित 100 साल पुराने संस्कृत महाविद्यालय का है.. जहां दो शिक्षक एक जरजर भवन के भरोसे पूरा महाविधालय चल रहा.. यहाँ के पुजारी और पण्डा भिक्षा मांग कर यहाँ पढ़ने वाले बच्चो का भरण पोसन करते है… भारत की इस प्राचीन संस्कृति की ऐसी दुर्गति देख कर तो प्रशासन और शासन की व्यवस्था मे सवाल उठना तो लाजमी है…
सतना जिले के अमरपाटन तहसील का एक गांव खजुरीताल है.. वैसे तो खजुरीताल गांव आज के आधुनिक समय मे भी प्राचीन आध्यात्मिक सभ्यता को अपने मे समेटे हुए है.. लेकिन इस सभ्यता के संरक्षण के लिए आज तक कोई उम्दा कोशिश नही की गई है.. दरअसल खजुरीताल गांव मे संस्कृत, साहित्य, वेद और संगीत की उच्च स्तरीय शिक्षा के लिए 100 बर्ष पहले संस्कृत उच्चतर महाविद्यालय की स्थापना की गई थी.. लेकिन उसी दौरान मुफलिसी ने यहां के संचालको की कमर तोड दी और संस्थापक श्री पुरुसोत्तम दास जी महाराज ने तात्कालिक मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के समय इस संस्था को सरकार के हवाले कर दिया.. उसके बाद यहां पढने और पढाने वालो को लगा कर कहा अब सब बेहतर हो जाएगा… लेकिन वक्त गुजरता गया और सब ठीक होने के बजाय इस संस्था की हालत बद से बदतर हो गई.. आलम ये है कि आज प्रशासनिक उदासीनता के कारण ये संस्था भवन, शिक्षक पाई पाई के लिए मोहताज है.. आलम तो यह भी है की अब इस महाविधालय का नाम तक दीवारों में कहीं लिखा हुआ नहीं दिखाई पड़ता !
पुराने समय मे आभावो के बीच इस संस्था से पढकर संभाग के कई विद्वान आज अपनी संस्कृत और शिक्षा का लोहा मनवा रहें है.. लेकिन अब जर्जर भवन, छत से गिर चुका प्लास्टर, दीवारों में लम्बी गहरी दरारे, टूटी हुई खिडकियां और जंग खाते रोशनदान के साथ सीडन भरी दीवार.. इस संस्कृत महाविद्यालय की पहचान बन चुके है.. इतना ही नहीं इस संस्था मे 8 बाई 15 के महज दो कमरे है.. जिसमे एक मे संस्था के संचालन के लिए जरुरी सामान तो बचे एक कमरे में 40-45 बच्चो का अपना गुजारा करना पडता है… बच्चो की माने तो भिक्षा में मिले अनाज से यहाँ के गरीब विद्यार्थी अपना पेट भरते है… बरसात के दिनो मे इस कमरे मे टपकती छत के नीते तो अन्य दिनो मे आश्रम प्रागंण के बरामदो और पेड के नीचे बच्चो रात गुजारनी पडती है.. खँडहर में तब्दील हो चूका विधालय भी ऐसा की कभी भी धराशाही हो जाए.. सतना के खजुरीताल मे 100 बरस पुराने इस शासकीय संस्कृत महाविद्याय मे बदइंतजामी का ये आलम है.. जो अभिवावक गरीबी के हालात मे अपने बच्चो बच्चो को घर मे नहीं पढा पा रहे थे… वो अब इस संस्था के हालात देखकर अपने बच्चो को यहां भेजने से कतरा रहे हैं.. यहां कि स्थिती है कि यहां हर साल बच्चो की संख्या मे कमी हो रही है… जानकारी के मुताबिक इस संस्था मे दो तीन आचार्य है जो कक्षा 6 से लेकर एमए तक के बच्चो को पढाते भी और उनके लिए जरुरी भोजन और कपडो के लिए भिक्षा मांगकर बच्चो की जरूरते भी पूरी करतें हैं….
संस्कृत भारत की प्राचीन भाषा औऱ सभ्यता से जुडा विषय है.. मानना भी है की संस्कृत से संस्कृति बनती है… जिसकी समाज को आज सबसे जादा जरूरत है… लिहाजा इसके संरक्षण के तमाम दावे किए जाते रहे है.. लेकिन इन तमाम दावो के उलट इस संस्कृत महाविद्यालय मे बडी खाई मे तब्दील हो गए हैं.. इस ओर जिले के अधिकारी भी ध्यान नहीं देते तभी तो वे खुद को इस मामले से अंजान बता रहे… लेकिन अब मामला संज्ञान में आने के बाद सतना कलेक्टर संस्कृत महाविद्यालय की व्यवस्थाएं दुरुस्त करने की बात कह रहे है.. शासकीय संस्कृत महाविद्याल मे घटती बच्चो की संख्या इसकी लोकप्रियता के पैमाने तय नहीं कर सकती है.. बल्कि संस्कृत और संस्कृति की रक्षा के नाम पर अपनी रोटी सेंकने वाले उन समाज के ठेकेदारो के मुह पर तमाचा है… जो धर्म के नाम पर बडी बडी दुकाने खोलकर उसमे फरेब बेंचते है..