बलरामपुर…(कृष्णमोहन कुमार) जिले के जिस गाँव मे सूबे के मुखिया डॉक्टर रमन सिंह ने प्रधानमंत्री आवास की ईंट जोड़ी हो उसी गाँव से करप्शन की ऐसी खबरे आ रही है.. जिसे मौन जिला प्रशासन ने तीन महीनों से दबाए हुए रखा है..इस मसले की सच्चाई तो यह भी है की इस गम्भीर मामले में कार्यवाही ना होना एक राजनीतिक प्रकोप का ही नतीजा है..यह मसला ज्यो का त्यों ही लटका है..अधिकारी आये और बदल गए..पर नही बदली तो गाँव की सूरत अब ऐसे में विकास महज ही एक छलावे के साथ सरकारी पन्नो पर है..जिसको लेकर प्रदेश सरकार मिशन 65 को लेकर दम भरती है..इतराती है की प्रदेश में विकास हुआ पर किसका इसका जवाब?. उसके पास नही है..और अगर कार्यवाही भी हुई तो वह भी महज खानापूर्ति जिसे जांच के नामपर सरकारी फाईलो में दफन कर दिया गया..
अकेला मोदी क्या करेगा…
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस की 60 साल के कार्यकाल को जनता के साथ छलावा कहते हुए स्वच्छ भारत मिशन,प्रधानमंत्री आवास जैसी तमाम दर्जनों योजनाओं को संचालित कर देश मे एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के संकेत दिए थे..पर क्रप्ट प्रशासन ने मोदी जी की योजनाओ के साथ ऐसा खेल खेला जो यादगार बनकर इतिहास के पन्नो पर दफ़न हो गया..अब भला अकेला मोदी ही क्या विकास करेगा जब सिस्टम ही विकास नही चाहता हो..
नक्सल हिंसा के साये के खात्मे के बाद भी बदहाली…
दरसल यह जो कहानी है वह बलरामपुर जिले के शंकरगढ़ ब्लाक के ग्राम जोकापाठ की है..जहाँ पहले कभी नक्सलवाद की तूती जमकर बोलती थी..पर क्षेत्र से नक्सलवाद के खात्मे के बाद ग्रामीण नक्सल हिंसा के साये से उभर कर आये..जोकापाठ में आज 70 फीसदी लोग पहाड़ी कोरवा है..जहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गरीबो को घर देने की स्कीम पर काम चल रहा था..ग्राम पंचायत जोकापाठ में वर्ष 2016-17 में 94 प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत किये गए..जो की सरकारी रिकार्डो के मुताबिक पूर्ण है..और अधिकारियों से साथ- साथ क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों का दावा है की पहाड़ी कोरवा अनुसूचित जनजाति बाहुल्य जोकापाठ में रमन सरकार ने विकास से गांव की तस्वीर बदली है…
दावे तो महज कागजी है साहब!…
अब मुद्दे की बात तो यह है की स्थानीय प्रशासन के तमाम दावे कागजी है..प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत होने के पहले दौर में स्वयं मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह साल 2016 के लोक सुराज के दौरान अचानक जोकापाठ पहुँचे थे..और उन्होंने गाँव के शोभरण के घर जाकर निर्माणाधीन प्रधानमंत्री आवास की ईंट जोड़ समूचे छत्तीसगढ़ में वाहवाही बटोरी थी..खैर शोभरण का पीएम आवास तो बन गया पर गाँव मे आज भी 40 पीएम आवास है जो कागजो में बने है और धरातल पर डोर लेवल तक ही बन पाए है..
किस्सा कहानी का…
अब यह भी जान लीजिए की यह किस्सा क्या है..जब लोगो को प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत हुए तो उन्हें योजना के मुताबिक एक लाख पैतीस हजार की राशि तीन आसान किश्तों पर मिलनी थी..पहली किश्त बावन हजार प्लिंथ लेवल के काम के लिए..दूसरी किश्त बावन हजार डोर लेवल के लिए..और तीसरी किश्त 26000 छत के लिए दी जानी है..पर गाँव के प्रधानमंत्री आवास की पहली किश्त ही करप्शन के दायरे में आ गई…आरोप है की गांव के तत्कालीन बीएलई ऋषिकेश अनुरंजन, रोजगार सहायक विवेक यादव,ने हजम कर ली है ,वही तत्कालीन जनपद सीईओ महेंद्र मरकाम और इंजीनियर ने फर्जी जिओ टेक कर आवास को पूर्ण बता कर सीधे सीधे शाशन को गुमराह कर पहाड़ी कोरवाओं को बदहाली का जीवन जीने पर मजबूर कर दिया..
अब यह भी जान लीजिए की विवेक की पृष्ठभूमि क्या है?..
वही इसमें अहम भूमिका उनके पुत्र रोजगार सहायक विवेक यादव समेत तत्कालीन बीएलई ऋषिकेश ,तत्कालीन जनपद सीईओ महेंद्र मरकाम ने अदा की.वह इसलिए की प्रधानमंत्री आवास योजना की किश्त जारी करवाने के लिए भौतिक सत्यापन कर आवास का फोटो भेजना होता है ,जिस प्रकिया में फर्जी फ़ोटो भेजकर तत्कालीन जनपद सीईओ साहब वाहवाही लूटने के लिए फर्जीवाड़ा का खेल खेलकर प्रधानमंत्री के सपनो को ध्वस्त कर मुख्यमंत्री जी के साथ एक भद्दा मजाक कर दिया..
आदिवासी बाहुल्य इस जोकापाठ के पहाड़ी कोरवा इतने जागरूक भी नही की उन्हें लिखना पढ़ना आये..सो बीएलई ने उनसे अंगूठे के निशान लगवाकर उनके खाते से पीएम हाउस की पहली किश्त निकाल ली..अब दो बरस बीतने के बाद भी आवास नही बनने पर ग्रामीणों ने इसकी पड़ताल की तब खुलासा हुआ कि उनके खाते से पैसे निकाल लिए गए..जिसकी लिखित शिकायत जिला प्रशासन के अलावा पुलिस थाने में की गई..बावजूद इसके तीन महीने गुजर गए..इस मसले पर परिणाम शून्य ही है..जिम्मेदार अधिकारी कुछ भी कहने से मना कर रहे है..जो समझ से परे है…