गंगाजल के बारे में यह तथ्य तो सभी जानते ही हैं कि यह कभी खराब नहीं होता और यह सभी तरह के पानी से ज्यादा पवित्र माना जाता हैं, पर क्या आप जानते हैं कि आखिर इसको सब से पवित्र क्यों माना जाता हैं। असल में इस तथ्य को बहुत कम लोग जानते हैं इसलिए आज हम आपको इस बारे में जानकारी दे रहें हैं ताकि आप इसके इस तथ्य से परिचित हो सकें।
भारत एक ऐसा देश हैं जहां सनातन धर्म को मानने वाले लोग “वसुधेव कुटुम्बकम” की अवधारणा का पालन करते हैं। यही कारण हैं कि ये लोग प्रकृति के हर पक्ष का पूजन ईश्वर की उपस्थिति के रूप में करते हैं। चाहें वह पेड़-पौधें हों या नदियां। नदियों में सबसे ज्यादा पवित्र गंगा नदी को माना जाता हैं। इसके जल को भी बहुत पवित्र माना जाता हैं। गंगा के जल की यह खासियत होती हैं कि वह कभी भी खराब नहीं होता हैं। आज हम आपको इसी बारे में बता रहें हैं कि गंगाजल को सबसे पवित्र आखिर क्यों माना जाता हैं और यह कभी ख़राब क्यों नहीं होता हैं।
गंगा नदी गौमुख से निकल कर 2510 किमी का सफर तय करती हुई गंगासागर में विलय होती हैं। यह बनारस तथा हरिद्वार जैसे अनेक शहरों से होकर गुजरती हैं और लोगों के तन मन को पवित्र करती हुई किसानों के खेतों को हरा भरा बनाती हुई आगे बढ़ती हैं। प्राचीन कवियों तथा संतों ने गंगा का बहुत आदर के साथ अपने साहित्य में समावेश किया हैं।
इसके बारे में यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण की बात करें तो वह तथ्य सामने आता हैं जिसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। आपको बता दें कि इसमें “वाक्टिरियोफेज़” नामक विषाणु पाया जाता हैं। यह विषाणु जल को गंदा करने वाले अन्य विषाणुओं का भोजन करता हैं। “वाक्टिरियोफेज़” नामक यह विषाणु गंगाजल में सबसे ज्यादा मात्रा में मिलता हैं।
यही कारण हैं कि गंगाजल में कभी कीड़े नहीं पड़ते हैं और वह कभी भी खराब नहीं होता हैं। इसके अलावा वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि इसमें आक्सीजन को बनाये रखने की विशाल क्षमता हैं पर वे अभी तक इस बारे में वैज्ञानिक दृष्टिकोण देने में असर्मथ रहें हैं। यही कारण हैं कि गंगाजल को सबसे पवित्र माना जाता हैं। आवश्यकता हैं कि इसके जल का संरक्षण और संवर्धन किया जाए