अम्बिकापुर इस वर्ष दीपावली गुरुवार को थी और लक्ष्मी पूजन के लिहाज से मुहूर्त काफी उत्तम था.. हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी अम्बिकापुर में लोगो ने माँ लक्ष्मी के आह्वान के लिए अपने घरो में साज सज्जा की जिसमे गेंदे के फूल और तोरण द्वार में आम की पत्तियां और मार्गपाली बंधन में केले के पेढ़ लगाए गए.. बहरहाल उत्सव के आनंद में शायद लोग ये भूल गए की जिस दिन वो केले का पेड़ महज साज सज्जा के लिए काट कर अपने घरो को सुशोभित किया वो दिन गुरुवार का था और शास्त्र के जानकारों के अनुसार गुरुवार को केले के पेड़ की पूजा की जाती है.. इतना ही नहीं केले के पेड़ को काटना मतलब देव व गुरु के श्राप लेने जैसा है.. लिहाजा सवाल यह उठ रहा है की क्या लोगो ने प्रदर्शन के लिये देव श्राप लेने जैसा काम किया.. खैर दीपावली में हर घर में साज सज्जा माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए की जाती है और लक्ष्मी को खुस करने के लिए कोई विष्णु पूजन में उपयोग किये जाने वाले केले के पेड़ को काटना कई संशय पैदा कर रहा है.. हालाकी वैसे भी किसी भी पेड़ को काटना उचित नहीं है.. लेकिन गुरुवार को केले के पेड़ को काटना सनातन धर्म के अनुसार सही नहीं है.. बहरहाल इस दीपावली में बड़ी ही असमंजस की स्थिति बनी है.. क्योकी लक्ष्मी के आह्वान के लिए केले का पेड़ लगाये जाने की भी परम्परा है और गुरुवार को केले का पेड़ काटने के दुष्परिणाम भी शास्त्रों में विदित है..
पं. प्रियाशरण त्रिपाठी_ज्योतिषाचार्य
इस सम्बन्ध में प्रसिद्द ज्योतिषाचार्य ने फटाफट से बताया की गुरुवार के दिन केले के पेड़ को काटने से देव और गुरु दोनों का अपमान होता है और हम ऐसा करके उनके श्राप के भागीदार बनते है.. हालाकी उन्होंने यह भी कहा की हमारे शास्त्रों में शुभ अवसर पर मार्गपाली बंधन किया जाता है और घरो के द्वार में केले के पेड़ लगाये जाते है जिसे लक्ष्मी के आहवन और विसर्जन के लिए लगाया जाता है..