सत्ता पक्ष के तीन मंडल अध्यक्ष हैं पंचायत के
सूरजपुर (रक्षेन्द्र प्रताप सिंह)- जिले में नल जल योजना का क्रियान्वयन सही ढंग से पीएचई द्वारा नहीं किया जा रहा है। इसके कारण ही आमजन मानस को शासन की इस योजना लाभ नहीं मिल पा रहा है। जबकि लोगों को पानी प्रदाय करने के लिए लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग लाखों रुपए पानी की तरह बहाया गया है। जनपद पंचायत भैयाथान के ग्राम पंचायत बड़सरा में नल जल योजना के तहत करीब 18 लाख रुपए की लागत से पंप हाऊस, पानी टंकी और पाइप लाइन का विस्तार कार्य पीएचई विभाग द्वारा चार साल पहले कराया गया था। पानी टंकी के निर्माण के लिए विभाग ने पंचायत के एकमात्र कांजीहौस की बलि चढ़ाते हुए उसे तोड़कर वहीं पर पानी टंकी का निर्माण ठेकेदार से निविदा के माध्यम से कराने बाद पाइप लाइन का विस्तार कर अपने दायित्वों से इतिश्री कर ली। वहीं विभाग ने पंचायत में पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित कराना भी उचित नहीं समझा।
जनप्रतिनिधि की सक्रियता पर आश्वासन का झुनझूना –
ग्राम पंचायत बड़सरा ने क्षेत्र को सदैव कर्मठ जनप्रतिनिधि दिए हैं। इन दिनों भी सत्तारूढ़ दल भाजपा के भैयाथान मंडल अध्यक्ष रामू गोस्वामी, अन्य पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के सुशील साहू और अजजा प्रकोष्ठ के मंडल अध्यक्ष जगनारायण सिंह बड़सरा पंचायत के ही हैं। इनके साथ क्षेत्र की जनपद सदस्य सुरुचि सुनील साहू, युवा भाजपा नेता शिवकुमार पांडेय के नेतृत्व में ग्रामीणों ने कलेक्टर समेत पीएचई विभाग को नल जल योजना का क्रियान्वयन करने कई बार आवेदन सौंपा था जिस पर कभी कोई कार्यवाही नहीं हुई। वहीं जब आन्दोलन की चेतावनी दी गई तो पीएचई विभाग द्वारा इंजीनियर और कुछ मजदूरों से चेकिंग के नाम पर थूक पालिश जैसा काम करना शुरू कर दिया और माहौल शांत होते ही विभाग भी शांत हो जाता रहा है।
एक आरोप पर रातोंरात खुदा हैंडपंप –
ग्राम पंचायत बड़सरा के आश्रित ग्राम बस्करपारा में जातिगत भेदभाव के कारण पानी न भरने की शिकायत को भी प्रशासन ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था। मीडिया द्वारा मामले को तूल दिए जाने के बाद पीड़ित परिवार के घर के पास पीएचई विभाग ने रातोंरात हैंडपंप का उत्खनन करा मामले को ठंडा करने की कोशिश की और जिला प्रशासन ने कूप निर्माण की भी तत्काल स्वीकृति प्रदान की। वहीं प्रशासन की इस तात्कालिक कार्यवाही के बाद बड़सरा का नल जल योजना के संचालन का मामला तूल पकड़ने लगा है। ग्रामीण अब कह रहे कि क्या यह प्रशासनिक भेदभाव नहीं है?