अम्बिकापुर
हिन्दी साहित्य परिषद के तत्वाधान में घुनघुट्टा बांध परिसर में काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया, जहां कार्यक्रम की अध्यक्षता सुरेश प्रसाद जायसवाल ने की। गोष्ठी का शुभारंभ गीतकार रंजीत सारथी ने सरस्वती वंदना मां सरस्वती वरदान दो, मुझको नवल उत्थान दो से किया, तत्पश्चात सुरेश प्रसाद जायसवाल ने अपनी रचना में समय की प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला। समय सदा अकेला चलता। वह करता किसी का इंतजार नहीं। न रूकता है न झुकता। वह करता किसी से प्यार नहीं। कृष्णकांत पाठक ने सुख-दुख को मानवीय कर्मों का प्रतिफल बताते हुये यह कविता प्रस्तुत की। जीवन कर्मों के बंधन में बस कर्मों का रूप। दुरूख अंधियारी रात बने या सुख सूरज की धूप। धान का कटोरा कहे जानेवाला छत्तीसगढ़ अब शांति का गढ़ नहीं रहा। नक्सली गतिविधियों के कारण इसकी शांतिप्रिय छवि को गहरा आघात पहुंचा है। गीतकार देवेंद्रनाथ दुबे इस सच्चाई को कहने से नहीं चुके। छत्तीसगढ़ की माटी का मैं गीत सुनाने आया हॅू। धान कटोरे में बिखरी बारूद दिखाने आया हॅू।
गोष्ठी में विनोद तिवारी ने कर्म और श्रम के भावार्थ को चंद शब्दों में निरूपित किया। कर्म और श्रम का भावार्थ हमेशा यही संदेश देता है। श्रमवीरों की राह में शाम नहीं, हमेशा सवेरा होता है। कार्यक्रम में विनोद हर्ष ने अपने भीतर के रचनाकार के जीवित रहने का जोरदार उद्घोष किया। लिखता रहा तेरी याद में जो रचनाओं को, मेरे भीतर की वो कलम अभी जिन्दा है। देश में पांच सौ और हजार रूपये के नोट अचानक प्रचलन से हटाये जाने के फलस्वरूप अर्थव्यवस्था की मंदी पर मुकुन्दलाल साहू ने अपने दोहे में गहरी चिंता जाहिर की। अर्थव्यवस्था देश की, आज हो गई मंद। पांच सौ-सौ हजार के नोट हो गये बंद। आयोजन को सफल बनाने रवि प्रकाश तिवारी, शुभम दुबे, अनिल चैरसिया, धनंजय कुमार भास्कर, ज्ञानचंद तिग्गा, दादनाथ राम, गणेश दास, सुभाष सिंह, मनीलाल आदि ने सक्रिय सहयोग प्रदान किया।