जहां एक ओर धर्म और जाति की सियासत के नाम पर लोग भड़काऊ राजनीति के दांव पेच खेल रहें हैं तो दूसरी ओर मजहब के नाम पर सुंदर संदेश देकर कुछ लोग इस देश को एक करने की अजीब मिशाल पेश कर रहें हैं, इसी तरह से हमारे देश के लिए मिशाल बने पश्चिम बंगाल के जिले मिदनापुर में रहने वाले यासीन पठान। जिनकी उम्र 62 साल की है। जिन्होनें अपने धर्म के साथ हिन्दू धर्म को भी जोड़कर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और साथ ही ये संदेश भी दिया है कि हिन्दू धर्म की आड़ में सम्प्रदायिकता फैलाने वाले लोग अपने ही धर्म के प्रति कितने सजग रहें हैं।
यासीन पठान नामक ये शख्स जन्म से भले ही मुस्लिम हो, पर कर्म से किसी महात्मा से कम नहीं है, पिछलें कई वर्षों से ये जर्जर पड़े मंदिरों की देखभाल कर रहें हैं। स्कूल में एक चपरासी के पद से सेवानिवृत्त हो जाने के बाद से यासीन पठान ने अब तक कई इलाकों के 34 से ज्यादा जर्जर पड़े मंदिरों का दोबारा निर्माण कराया है। भले ही यह पैसों की तंगी से परेशान रहें हों, पर इनका मिशन कभी भी रूका नहीं है। मुसलमान होने पर शुरूआत में काफी लोगों ने इसका विरोध किया पर उन्होंने अपना मंदिर बचाओं मिशन जारी रखते हुए इन विरोधों का सामना भी जमकर किया। आज उनके ही समुदाय के लोग उन्हें काफिर कह रहें हैं। अपनी लगन और मेहनत के दम पर यासीन पठान ने कई बदहाल मंदिरों का पुर्ननिर्माण कर उन्हें एक नई जिंदगी दी है। इस काम के लिए उन्हें 1993 में कबीर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था, लेकिन पिछले साल उन्होंने इस सम्मान को वापस कर दिया।
जर्जर मंदिरों के हालात सुधारते-सुधारते आज उनका शरीर भी काफी जर्जर हो चुका है, उन्हें किडनी और दिल की खतरनाक बीमारी है,जिसके लिए उपचार की ज्यादा जरूरत है, पर आर्थिक तंगी के कारण उनका समुचित इलाज नहीं हो पा रहा है। आज इस देश में कुछ लोग ऐसे भी है जो एक फरिश्ता बनकर इस जहां पर आये है और लोगों को एक जुट करने की कोशिश कर रहें हैं, पर शायद कुछ स्वार्थ लोगों की नजरों से दूर होने को कारण इनकी आवाज दबकर ही रह गई है। इसलिए उनकी इस जर्जर अवस्था को देखकर भी उन्हें किसी भी प्रकार की कोई सहायता नहीं मिल पा रही है। क्या इन जर्जर होते मंदिरों के समान भी इस फरिश्ते की ओर सरकार का ध्यान जा पायेगा। जो अपने हित को भूलकर समाज के हित के लिए खड़ा होकर काम कर रहा है।