सूरजपुर
प्रतापपुर से “राजेश गर्ग”
श्रवण मास के आते ही भक्त शिव भोले की भक्ति के रंग में रंग जाते है। श्रवण मास में शिवलिंग के जलाभिषेक का विषेष धार्मिक महत्व है। नगर के मध्य में प्राचीन शिवमंदीर, बांक नदी के तट पर पारदेष्वर शिवमंदीर, शिवपुर में अर्धनारेष्वर शिवमंदीर, बैकोना में देउर बाडी स्थित शिवमंदीर एवं सारासोर स्थित शिवमंदीर में शिव भक्तों द्वारा जलाभिषेक एवं पूजा किया जाता है। शिवपुर स्थित अर्धनारेष्वर नाथ शिव मंदीर में शंकर घाट अम्बिकापुर, सारासोर एवं दूर दूर से शिवभक्त कावर से जल लाकर शिवलिंग का अभिषेक करते है।
प्रतापपुर से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व दिषा में पहाड़ों की पीठ पर ‘‘शिवपुर तुर्रा‘‘ नाम से प्रसिद्ध स्थल है। यहीं शिव मंदिर के अंदर जलकुण्ड में अर्द्धनारीष्वर शिवलिंग विराजमान हैं। इस शिव लिंग में शिव एवं पार्वती दोने के रूप (चिन्ह) स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। इस लिए इस दुर्लभ शिव लिंग को ‘‘जलेष्वरनाथ अर्द्धनारीष्वर शिवलिंग‘‘ कहते हैं। यह षिवलिंग डीपाडीह की मूर्तियों जैसा पत्थर से मिलता-जुलता दिखता है। इस तरह का अर्द्धनारीष्वर षिवलिंग जो जल कुण्ड में विराजमान हो पुरी दुनियां में कहीं देखने सुनने को नहीं मिलता है। शिव मंदिर के बगल से विषाल चट्टानो के मध्य खोह से अविरल जलधारा निकलती हुई कुण्ड के शिवलिंग की परिक्रमा करती हुई नीचे एक बड़ी टंकी में गिरती है। इस टंकी के जल को तीन धारा पुरुषों के लिए एवं दो धारा महिलाओं के लिए स्नान घर में प्रवाहित किया गया है। अन्ततः इन पांचों धाराओं का पानी एक तालाब में एकत्रित होता है। इससे षिवपुर एवं बैकोना गाँव के कुछ खेतों की सिंचाई होती है। याहा का जल शुद्ध मधुर एवं मौसम के अनुकुल रहता है। गर्मी में सुबह ठण्डा एवं ठण्ड में कुनकुना गर्म पानी प्राकृतिक वरदान से मिलता है। जन समुह इसे ईष्वरीय कृपा मानता है। यहाँ का जल‘‘गंगा जल ‘‘ तुल्य है, क्योंकि इस जल को बोतल में रखने पर भी कीड़े नही पड़ते । शुद्धता एवं मधुर स्वाद बना रहता है। इसलिए इसे ‘‘शिवगंगा‘‘ एवं ‘‘पाताल गंगा झरना‘‘ भी कहा जाता है। लोगों की मान्यता है कि यहाँ के जल सेवन मात्र से शारीरिक बाधिंयां दूर होती है। शिवपुर के ज्योतिर्लिंग तुल्य शिवलिंग वाला धार्मिक स्थल ‘‘सरगुजा का बाबा धाम‘‘ माना जाता है। पुराणों में देवषंकर के निवास स्थल पर बरगद, बेल, आम, पीपल एवं पाकड़ वृक्षों के होने का उल्लेख मिलता है, जो षिवपुर षिव मंदिर परिसर में सभी वृक्ष लगे हुए है। शिव मंदिर के पष्चिम दिषा में कुछ दूरी पर नाले के समीप ‘‘सीता पांव‘‘ नामक स्थान भी है। यही पर माता सीता के पैर के निषान पानी पीने के दौरान एक पत्थर पड़े थे। इसी चरण चिन्ह के एड़ी वाले हिस्से से निरंतर जल बहता रहता है। इसे स्थानीय लोग ‘‘गोसाई ढोढ़ी‘‘ के नाम से जानते हैं।
जलेष्वर नाथ शिवलिंग के प्रकाष में आने के संबंध में लोक कथा भी प्रचलित है कि इस क्षेत्र में एक माहान प्रतापी राजा धर्मिक प्रकृति का रहता था। उसे ही स्वप्न में शिवपुर पहाड़ी पर दुर्लभ षिवलिंग के दर्षन हुए, जो सघन वन में बरगद वृक्ष के नीचे दबा हुआ था। राजा ने दूसरे दिन सुबह होते ही दुर्लभ शिवलिंग की खोज प्रारंभ करवा दी अथक प्रयास के बाद शिवलिंग की खोज पूरी हुई। उन्होने अपने महल के समीप तालाब के किनारे मंदिर बनवाकर उसमें स्थापित करवाने के लिए खुदाई प्रारंभ करवाया। निरंतर खुदाई के बाद भी षिवलिंग के छोर का पता नही लगा। उत्खनन के दौरान दो दुर्लभ शिवलिंग एवं एक नंदी की मूर्ति मुख्य शिवलिंग से चिपकी हुई मिली। इसे भी मंदिर में दुग्धेष्वर शिवलिंग एवं नर्मदेष्वर शिवलिंग एवं नंदिष्वर मूर्ति के नाम से स्थपित किया गया है। ग्रामीणों के द्वारा बताया जाता है कि उत्खन के समय सब्बल के प्रहार से शिवलिंग के आधे भाग से रक्त एवं आधे भाग से दूध निकलने लगा तथा तीव्र आकाषीय बिजली चमकने से स्थापना हेतु बना मंदिर ध्वस्त हो गया। राजपुरोहितों ने देव के शीघ्र शांति हेतु महारूद्र यज्ञ करवाने को कहा। विधिपूर्वक महारूद्र यज्ञ का आयोजन हुआ। इसके पूर्णाहुति के दिन समीप के विषाल चट्टानांे की मध्य खोह से ‘‘पाताल गंगा‘‘ निकल पड़ीं। जो वर्तमान में भी शिवलिंग की परिक्रमा करती हुई नीचे एक बड़ी टंकी में गिरता है। महारूद्र यज्ञ के समय केतकी झाड़ लगाये गये थे, जो आज भी मंदिर परिसर में लगे हुए हैं। शिवपुर में महाषिरात्रि के दिन विषाल मेला लगता है। दुर्लभ शिवलिंग के उपर कभी-कभी सर्प, केकड़े, विच्छु एवं अन्य जलीय कीड़ों के साथ एक बड़ा काला नाग सर्प फन फैलाये दिखाई देता है। जो श्रद्धालुओं को कभी हानि नहीं पहुँचाते हंै। ये सभी भोले शंकर के गण माने जाते हैं। इस मंदिर परिसर में विषाल धुरंधर नाथ शिवलिंग,राधा कृष्ण पंचमुखी मंदिर, नंदीष्वर की मूर्ति, हनुमान जी की प्रतिमा एवं राहु-केतु की मूर्ति स्थपित की गई है।
इस रमणीय स्थल को अविभजित मध्य प्रदेष शासन ने 1992 नें संरक्षित स्मारक घोषित किया था। किन्तु खेद का विषय है कि छत्तीसगढ़ शासन द्वारा जारी संरक्षित स्मारकों की सूची से इस रमणीय स्थल का नाम हटा दिया गया है। आज भी शिवपुर संरक्षण की बाट जोह रहा है। इस रमणीय स्थल को पर्यटन के रूप में विकसित करना चाहिए। ताकि छत्तीसगढ़ की ख्याति देश-विदेश तक चर्चित हो सके।
देऊर बाड़ी बैकोना
शिवपुर मंदिर से लगभग एक किमी. की दूरी पर दक्षिण दिषा में बैकोना गाँव स्थित है। इसी गाँव में नाले के समीप एक प्राचीन स्थल ‘‘देऊर बाड़ी’’ है। यहीं पर बढ़ता हुआ एक षिवलिंग विराजमान है। बताया जाता है कि इसको एक दो बार काट कर अन्यत्र मंदिरों में स्थापित किया गया है। एक बार बैल मार कर तोड़ दिया था, फिर यह षिवलिंग वर्तमान समय में 26 इंच ऊँचा है। छत्तीसगढ़ में अनेक स्थानोें पर ‘‘देऊर’’ नाम से प्राचीन मंदिर एवं टीलों के अवषेष देखने को मिलते हैं। प्राकृतिक कारणों से देऊर मंदिर ध्वस्त हो गया होगा तथा षिवलिंग बढ़कर उपर निकल आया , जो ‘‘देऊर बाड़ी षिवलिंग’’ के नाम से बैकोना में स्थित है।
वर्तमान समय में पुराने पिलर के गड्ढे को छोड़ते हुए मंदिर का निर्माण ग्रामीणों ने किया है। 20 फरवरी 2012 महाषिरात्रि के दिन मंदिर निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। 28 अप्रैल 2012 को देऊर बाड़ी षिव मंदिर में षिव परिवार पार्वती,गणेष, कार्तिके व नंदी की प्रतिमा के साथ हनुमान की प्रतिमा स्थापित की गयी है।
प्रतापपुर के बनखेता मुहल्ले में बांकी नदी के समीप छत्तीसगढ़ का इकलौता षिवलिंगाकार पारदेष्वर षिव मंदिर है। इस मंदिर में 151 किलो पारा धातु से निर्मित पारद-षिवलिंग की स्थापना 21 अक्टूबर 1996 को की गयी। साधना एवं सिद्ध, पुस्तक में लिखा हुआ है कि अत्यंत कठिन प्रतिक्रियाओं से गुजरने के बाद पारा धातु (मरकरी) को ठोस आकार में कर पारद षिवलिंग का निर्माण किया जाता है । शिव निर्णय रत्नाकर में उल्लेख है कि पारद निर्मित षिवलिंग से श्रेष्ठ षिवलिंग न तो संसार में हुआ है,और न हो सकता है –
मृदः कोटिगुणां स्वर्ण, स्वर्णात्कोटि गुणां मणिः।
मणेः कोटिगुणां बाणो बाणात्कोटिगुणां रसः।।
रसरत्नसमुच्यय में पारद निर्मित षिवलिंग के संबंध में बताया गया है कि पारद षिवलिंग की पूजा से तीनों लोकों में स्थित शिवलिंग की पूजा का फल प्राप्त होता है
विधाय रसलिंगयो भक्तियुक्तः समर्चयेत।
जगत्रियलिंगानाँ पूजाफलमवाप्नुयात।।
पारद षिवलिंग की विषेषता सर्वदर्षन संग्रह, रसार्णव तंत्र, रस मार्तण्ड, ब्रह्म पुराण, षिव पुराण सहित सैकड़ों ग्रंथों बताई गई है। भगवान शंकर ने स्वयं कहा है कि मुझे वह व्यक्ति ज्यादा प्रिय है,जो द्वादष ज्योतिर्लिंग के दर्षन करने की अपेक्षा मात्र पारद शिवलिंग के दर्षन कर लेता है।
पारदेष्वर शिव मंदिर में स्थापित सभी मूर्तियां पारा धातु से ही निर्मित हैं। इनमें नंदी की मूर्ति 85 किलो , गणेष की मूर्ति 11 किलो, कार्तिकेय की मूर्ती 11 किलो , शिव की मूर्ति 21 किलो, पार्वती की मूर्ति 21 किलो,एवं गुरुदेव निखलेष्वरानंद की मूर्ति 21 किलो पारा से निर्मित है।