दुर्ग
“हितेश शर्मा” की विशेष रिपोर्ट
दान करने की परम्परा भारत में कई युगों से चली आ रही है, इस देश मे कई तरह के दान किये जाते है लेकिन नेत्र दान, रक्तदान को सबसे बड़ा दान माना जाता रहा है, इनके लिए केंद्र और राज्य सरकारे लगातार आम जनो को विज्ञापनों के माध्यम से प्रेरति भी करती आ रही है लेकिन अब समय बदल रहा है नेत्र और रक्त के बाद आ लोग अपना देहदान करने की इच्छा रखने लगे है ३६ गढ़ के दुर्ग जिले में एक ऐसी भी संस्था है जो लोगो को देहदान के लिए प्रेरित कर रही है ये संस्था लोगो को देहदान करने का संकल्प दिलवाकर बकायदा बांड और स्टाम्प भरवाया जाता है ताकि मृत्युउपरान्त इनका देह मेडिकल कॉलेजों में काम आ सके प्रणाम नामा की ये संस्था कई वर्षो से इस पुनीत कार्य में लगी है तो वही कई लोगो का देहदान भी करवा चुकी है ,
दुनिया के लिए बने मिशाल
दुनिया के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हुआ है की एक ही परिवार , एक ही वंशज के 32 सदस्यों ने देहदान करने का संकल्प लिया हो. इस मिसाल को कायम किया है दुर्ग –बालोद के बाफना परिवार ने जिसके 32 सदस्यों ने प्रणाम नाम की संस्था के पास देहदान का संकल्प लिया और अपनी वसीयत लिखी. देहदान करने वालों में 19 साल के युवा से लेकर 65 साल तक के महिला, पुरुष बुजुर्ग शामिल है. देहदान करने वालों का मरणोपरांत मेडिकल कालेज को दे दिया जायेगा जहाँ के मेडिकल छात्र इसका उपयोग पढाई में करेंगे.
गोल्डन बुक आफ रिकार्ड में दर्ज होगा नाम
दुर्ग और बालोद जिले में संयुक्त परिवार के रूप में रहने वाले चार पीढ़ियों वाले बाफना परिवार के इस परित्याग को गोल्डन बुक आफ रिकार्ड में शामिल करने की प्रारंभिक सहमति मिल गयी है जिसके लिए प्रक्रिया शुरू कर दिया गया है. देहदान करने की पहल परिवार के मुखिया मूलचंद जैन ने की जिसने एक पारिवारिक मिलन समारोह में देहदान का प्रस्ताव रखा और पूरा परिवार एक साथ होकर देहदान की वसीयत लिख दी . मूलचंद बाफना की माने तो उनके परिवार ने सामजिक दायित्व का निर्वहन किया है. साथ ही उन्होंने अपील भी कि है की देहदान करके मेंडिकल की पढाई करने वालों और जरुरत मंद मरीजों को लाभ पहुँचाने के लिए देहदान करें.जिससे गम्भीर बिमारी से गृसित लोगो को लाभ मिल सके इधर 2008 से लेकर अब तक लगभग 500 लोगों का देहदान करा चुके प्रणाम संस्था के अध्यक्ष ने ऐसे कार्यों के लिए सरकारी मदद की जरुरत बतायी है जो फिलहाल उन्हें नहीं मिल रहा है,