
Krishna Janmashtami 2025: जन्माष्टमी के पावन अवसर पर पूरे देश में श्रद्धा और उत्साह का माहौल है। भक्त उपवास रखकर लड्डू गोपाल की सेवा करते हैं और रात 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाते हैं। इस पर्व से जुड़ी कई धार्मिक परंपराएँ हैं, जिनमें से एक है। खीरे से कान्हा का जन्म कराने की अनूठी रस्म। यह परंपरा सुनने में भले ही सरल लगे, लेकिन इसके पीछे गहरी आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक मान्यता छिपी है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, जिस प्रकार गर्भ में शिशु नाल से जुड़ा होता है, उसी तरह खीरा अपने डंठल से जुड़ा रहता है। डंठल कटने तक वह गर्भ का प्रतीक माना जाता है। रात 12 बजे खीरे का डंठल काटकर उसमें विराजमान लड्डू गोपाल को बाहर निकाला जाता है, जो श्रीकृष्ण के जन्म का प्रतीक है। इस प्रक्रिया से यह संदेश भी मिलता है कि भगवान को प्रसन्न करने के लिए कोई भव्य या महंगी वस्तु आवश्यक नहीं, बल्कि सच्ची श्रद्धा और सरलता ही सर्वोच्च है।
रस्म निभाने के दौरान खीरे को हल्का काटकर उसमें लड्डू गोपाल को रखा जाता है और पीले वस्त्र से ढक दिया जाता है। जन्म का समय होते ही डंठल अलग किया जाता है, और बाल स्वरूप कृष्ण को चरणामृत से स्नान कराकर झूले में विराजमान कराया जाता है। इसके बाद भक्तजन भजन-कीर्तन और आरती के साथ जन्मोत्सव का उल्लास मनाते हैं।
मान्यता यह भी है कि खीरा समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक है। इस परंपरा को निभाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और सुख-समृद्धि का वास माना जाता है। यही कारण है कि यह अनोखी रस्म सिर्फ़ आस्था नहीं, बल्कि कृष्ण जन्म की पावन अनुभूति और भक्तों की गहन श्रद्धा का प्रतीक बन चुकी है।