
Ambikapur News: “दो गज दूरी मास्क है जरूरी” कोरोना कल में यह स्लोगन आपने आप जरुर सुना होगा. दरअसल, यह स्लोगन अम्बिकापुर मेडिकल कॉलेज के एक पत्र के सबसे नीचे लिखा है. लेकिन शायद इस स्लोगन के जगह यह लिखना था कि “दो गज दूरी जीवन ज्योति अस्पताल है जरूरी”.. ऐसा इसलिए क्योंकि अपनी लचर स्वास्थ्य व्यवस्था को छुपाने और एक निजी अस्पताल को लाभ पहुंचाने के लिए सरकारी मेडिकल कॉलेज प्रबंधन कुछ ऐसा करने जा रहा है. जो दूसरे निजी अस्पताल के लिए अपेक्षा का आधार बन सकता है.
टीम का गठन
सरगुजा संभाग मुख्यालय में संचालित देवेंद्र कुमारी शासकीय मेडिकल कॉलेज के डीन ने एक शासकीय पत्र जारी किया है. जिसमें मेडिकल कॉलेज में पदस्थ पांच डॉक्टर की एक टीम बनाई है. यह टीम शहर के निजी अस्पताल जीवन ज्योति का निरीक्षण करेगी और वहां पर न्यूरो सर्जरी और संबंधित उपचार का विवरण डीन को सौंपेगी. दरअसल, ये यह टीम निरीक्षण इसलिए करेगी. क्योंकि न्यूरो से संबंधित जिन रोगियों का इलाज अम्बिकापुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में संभव नहीं है. उन रोगियों को रायपुर रिफर करने की जगह शहर के एक निजी अस्पताल में भेजा जा सके.
जान बचाने लगाई गुहार
मतलब तो आप समझ ही गए होंगे और मतलब वो निजी अस्पताल वाले भी समझ गए होंगे. जिनके मेडिकल कॉलेज में कुछ खास संबंध नहीं है. वैसे डीन द्वारा जारी इस पत्र में यह दलील दी गई है कि जीवन ज्योति अस्पताल प्रबंधन ने सरगुजा कलेक्टर को एक आवेदन दिया था. जिसमें उन्होंने न्यूरो सर्जरी के रोगियों को उनके अस्पताल में रेफर करने की गुहार लगाई गई थी. जिससे कि रायपुर ले जाते समय मरीज की जान ना सके.
मंजूरी तय बस औपचारिकता
जानकारी के मुताबिक, न्यूरो सर्जरी के मरीजों को एक निजी अस्पताल में रेफर करने की योजना भी बन चुकी है और निर्णय भी हो चुका है. बस औपचारिकता के लिए एक पत्र जारी किया गया है और एक टीम बनाई गई है.
चर्चित रहा है अस्पताल
खैर जो भी हो मसला गंभीर है और गंभीर इसलिए भी है, क्योंकि यह वही जीवन ज्योति अस्पताल है. जहां सर्दी, खांसी और बुखार के मरीजों को अस्पताल के किस्त पटाने के लिए आईसीयू में डाल दिया जाता है और अगर किसी गरीब लाचार की इस अस्पताल में मौत हो गई, तो फिर यहां की फीस और दवाई अस्पताल का खर्च अदा करने के लिए गरीब के परिवार को अपनी जमीन भी बेचनी पड़ती है.
पहले भी सेटिंग
हालांकि, इस अस्पताल से मेडिकल कॉलेज अस्पताल की सेटिंग का यह कोई पहला मामला नहीं है. इससे पहले भी सिटी स्कैन जैसे तमाम जांच के लिए मेडिकल कॉलेज अस्पताल की खिड़की से इस अस्पताल के नाम की पर्ची कटती थी और फिर क्या खेल होता रहा होगा, यह आप खुद समझ सकते हैं.
बिना कागज के भी सेटिंग
वैसे न्यूरो सर्जरी डिपार्मेंट को लेकर निरीक्षण दल बनाकर एक नई पहल मेडिकल कॉलेज अस्पताल ने जरूर की है. लेकिन इस अस्पताल और मेडिकल कॉलेज अस्पताल की सेटिंग लंबे समय से चल रही है. जानकारी के मुताबिक, जिला अस्पताल में काम करने वाले कई विशेषज्ञ डॉक्टर इस अस्पताल में भी ड्यूटी बजाते हैं..और अस्पताल के मालिक के प्रति अपनी आस्था दिखाने के लिए वह डॉक्टर आए दिन मेडिकल कॉलेज में आने वाले मरीजों और उनके परिजनों को अच्छा इलाज न होने का भय जताकर इस अस्पताल में ले आते हैं, और फिर शुरू होता है लूट का वह चक्र.. जिसमें मरीज और उनके परिजन किस कदर फंस जाते हैं..कि फिर वहां के खर्च को ना वो निगल पाते हैं ना वो उगल पाते हैं. बहरहाल अब देखना है कि जारी आदेश के मुताबिक अगर इस निजी अस्पताल को मेडिकल कॉलेज अस्पताल न्यूरो के मरीज भेजता है. तो फिर ये अस्पताल आदेश में लिखे सरकारी खर्च के हिसाब से इलाज करता है..या स्थिति सर्दी, खांसी या बुखार वाले मरीजों जैसी होगी.
