
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के उल्लंघन पर उच्च न्यायालय ने सख्त रुख अपनाते हुए नए शैक्षणिक सत्र में बिना मान्यता प्राप्त गैर शासकीय शालाओं में विद्यार्थियों के प्रवेश पर रोक लगा दी है। यह आदेश उच्च न्यायालय की खंडपीठ – मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रविंद्र कुमार अग्रवाल – द्वारा विकास तिवारी की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया गया।
खंडपीठ ने राज्य शासन और शिक्षा विभाग के सचिव को निर्देशित किया है कि वे आगामी सुनवाई से पूर्व व्यक्तिगत शपथपत्र के माध्यम से यह स्पष्ट करें कि वर्ष 2013 के नियमन के बावजूद प्रदेश में नर्सरी से केजी-2 तक की कक्षाएं संचालित कर रहीं गैर मान्यता प्राप्त शालाओं को क्यों संचालित होने दिया जा रहा है। न्यायालय ने यह भी कहा कि इन स्कूलों के संचालन से न सिर्फ बच्चों का भविष्य संकट में पड़ रहा है, बल्कि अभिभावकों को भी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।
इससे पहले 30 जून 2025 को हुई सुनवाई में न्यायालय ने लोक शिक्षण विभाग के संचालक को हस्तक्षेप याचिका के संबंध में शपथपत्र प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। 11 जुलाई को प्रस्तुत शपथपत्र में विभाग ने यह दावा किया कि केवल कक्षा पहली से ऊपर की कक्षाएं संचालित करने वाली शालाओं के लिए मान्यता अनिवार्य है, जबकि नर्सरी से केजी-2 तक की कक्षाएं चलाने वाले स्कूलों के लिए यह जरूरी नहीं है।
शालाओं की संख्या का खुलासा
शपथपत्र में यह जानकारी भी दी गई कि प्रदेश में वर्तमान में नर्सरी से केजी-2 तक संचालित शालाओं की संख्या 72 है, नर्सरी से प्राथमिक तक की 1391, नर्सरी से पूर्व माध्यमिक तक की 3114 तथा नर्सरी से उच्चतर माध्यमिक तक की शालाएं 2618 हैं।
विरोध में उठी आवाज
याचिकाकर्ता विकास तिवारी के अधिवक्ता संदीप दुबे और मानस वाजपेयी ने विभाग के शपथपत्र को खंडित करते हुए कहा कि वर्ष 2013 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा लागू विनियम के अनुसार सभी गैर शासकीय शालाएं – चाहे वे नर्सरी से ही कक्षाएं क्यों न चला रही हों – उनके लिए मान्यता लेना अनिवार्य है। ऐसे में विभाग का तर्क नियमों के विपरीत है।
न्यायालय का स्पष्ट निर्देश
याचिका पर विचार करते हुए न्यायालय ने न सिर्फ शिक्षा सचिव से व्यक्तिगत शपथपत्र तलब किया है, बल्कि यह स्पष्ट आदेश भी दिया है कि आगामी आदेश तक बिना मान्यता प्राप्त स्कूलों में नए छात्रों के प्रवेश पर रोक लगाई जाए।