अपोलो हास्पीटल के किडनी रैकेट के इंटरनेशनल गिरोह की कहानी…

दिल्ली

दिल्ली पुलिस ने किडनी चोरों के एक ऐसे इंटरनेशनल रैकेट का पर्दाफ़ाश किया है, जो देश के नामी अपोलो अस्पताल में फल-फूल रहा था. इस रैकेट के तार देश के अलग-अलग राज्यों के साथ-साथ इलाज के लिए हिंदुस्तान आने वाले विदेशियों तक फैले हुए थे. धंधेबाज़ औनी-पौनी क़ीमत पर किडनी ख़रीदते और फिर उन्हें मोटी रकम पर बीमार लोगों को बेच देते थे. अब पुलिस को शक है कि इस रैकेट में कई बड़े लोग और डॉक्टर भी शामिल हो सकते हैं.

विदेशों तक फैला
जी हां, वही  जहां अक्सर जानी मानी हस्तियां अपना इलाज कराने के लिए अपोलो अस्पताल पहुंचती हैं. जिस अस्पताल को तमाम सुविधाओं से लैस माना जाता है. लेकिन क्या आप यकीन करेंगे कि ठीक सरिता विहार थाने और साउथ ईस्ट ज़िले के डीसीपी ऑफिस के सामने मौजूद इस अस्पताल में छह महीनों से एक बड़ा किडनी रैकेट काम कर रहा था? एक ऐसा किडनी रैकेट जिसके तार सिर्फ़ देश ही नहीं, बल्कि विदेशों तक भी फैले हुए थे. और जिसने अब तक धंधेबाज़ी में लाखों नहीं, बल्कि करोड़ों रुपए के वारे-न्यारे कर दिए?

अपोलो अस्पताल किडनी रैकेट का अड्डा 
ये बातें अजीब लगती हैं, लेकिन अब दिल्ली पुलिस ने जो खुलासा किया है, उससे साफ़ हो गया है कि हां, ये रैकेटरियों ने इस अस्पताल को अपना अड्डा बना लिया था. दिल्ली पुलिस को तब पहली बार इस रैकेट का पता चला जब एक दंपति आपसी झगड़े की शिकायत लेकर अस्पताल के सामने मौजूद सरिता विहार थाने में पहुंची. दरअसल, दोनों किडनी के बंदरबांट के धंधे के मोहरे थे और दोनों के बीच किडनी की खरीद-फरोख्त की रकम को लेकर ही लड़ाई हो गई थी.

 रैकेट का खुलासा ऐसे हुआ
जब पुलिस ने दोनों का झगड़ा सुलझाने की कोशिश की,किडनी रैकेट की नई कहानी सामने आ गई. इसके बाद पुलिस ने एक-एक इस रैकेट के पांच धंधेबाज़ों का गिरफ्तार कर लिया. असीम सिकदर, सत्य प्रकाश उर्फ़ आशु, देवाशीष मल्लिक, आदित्य और शैलेष सक्सेना. हालांकि पुलिस की मानें तो इस रैकेट का मास्टरमाइंड राजकुमार राव नाम का एक शख्स अब भी फ़रार है. और अब पुलिस इस रैकेट के बाकी धंधेबाज़ों का पीछा करती हुई कोलकाता, चेन्नई और कोयंबटूर जैसी कई जगहों पर छापेमारी कर रही है.

ऐसे करता है काम किडनी रैकेट
इस रैकेट में हर धंधेबाज़ के हिस्से का काम बंटा हुआ था. कुछ लोग शिकार यानी डोनर की तलाश करते थे, जबकि कुछ रिसीवर की. फिर शिकार और डोनर को रिश्तेदार दिखाने के लिए फ़र्ज़ी कागज़ात बनाए जाते थे. अस्पताल के मुलाज़िम इस काम में उनकी मदद करते थे. फिर डोनर और रिसीवर को अस्पताल में भर्ती करवाया जाता था. और 10-15 दिनों में डील पूरी हो जाती थी. रैकेट में रुपयों की बंदरबांट अपने-आप में एक चौंकानेवाली बात है. ये रैकेट किड़नी के लिए ज़रूरतमंद से 20 से 25 लाख वसूलता था. इसमें बिचौलियों को 1-1 लाख रुपए मिलते थे. जबकि डोनर को सिर्फ़ 3 से 4 लाख. यही वजह है कि धंधेबाज़ जगह-जगह से डोनर और रिसीवर की तलाश करते हैं, फर्ज़ी कागजात तैयार करवाते हैं और फिर लाखों रुपये की वसूली करते हैं. खास बात ये है कि विदेशी ज़रूरतमंद को किडनी बेचने के लिए हिंदुस्तानी के मुकाबले कई गुना ज़्यादा रकम मिलती है.

बड़े डॉक्टर हैं शामिल
ऐसे में सवाल ये है कि आखिर बाकी की मोटी रक़म कहां जाती थी. और यही वजह है कि अब पुलिस को लग रहा है कि अभी इस मामले में कई और खुलासे हो सकते हैं. मुमकिन है कि धंधे में कोई डॉक्टर या बड़ा आदमी भी शामिल हो. दिल्ली पुलिस के ज्वाइंट सीपी आरपी उपाध्याय का कहना है कि पुलिस अभी जांच में किसी को क्लीन चिट नहीं दे रही है. जरुरत पड़ी को असपताल के डाक्टरों से भी पूछताछ की जाएगी. पुलिस की मानें तो इस रैकेट के तार सिर्फ़ दिल्ली और आस-पास ही नहीं बल्कि पूरे देश और यहां तक कि विदेशों में भी फैले हुए हैं.

कहां जाता है लाखों रुपया..?
देश के नामी अपोलो अस्पताल में फल-फूल रहे किडनी रैकेट में रुपयों की बंदरबांट ने ही पुलिस को उलझा दिया है. दरअसल, अब तक की छानबीन में ये बात तो साफ़ है कि एक किडनी की खरीद-फरोख्त कुल 20 से 25 लाख रुपए में होती है. लेकिन इस ख़रीद-फ़रोख़्त की एक मोटी रकम रहस्यमयी तरीक़े से गायब हो जाती थी. कहने का मतलब ये कि इस रकम का छोटा हिस्सा डोनर और मिडिलमैन को मिलता था. जबकि रिसीवर से वसूली जाने वाली मोटी रकम का सबसे बड़ा हिस्सा आख़िर कहां जाता है, फिलहाल किसी को नहीं पता. और बस इसी सवाल ने पुलिस को इस धंधे की बड़ी मछलियों का पता लगाने के लिए मजबूर कर दिया है. यही वजह है कि अब पुलिस ने अपोलो अस्पताल प्रबंधन को भी सवालों की एक लंबी फेहरिस्त सौंपी है. हालांकि अस्पताल प्रबंधन इस मामले पर कैमरे पर तो कुछ नहीं बोलना चाहता. लेकिन उसने अपना बयान ज़रूर दिया है.

पिछले साल भी बेची गईं थी कई किडनी
पूछताछ में इस रैकेट के आरोपियों ने बताया है कि ये कोयम्बटूर में भी 2015 में करीब 12 से 15 किडनी निकलवा चुके है. सी राजकुमार राव भी एक मास्टरमाइंड है आंध्रा का है जो फिलहाल फरार चल रहा है. इस मामले में तीन महिला डोनर भी है जिन्होंने पैसे लेकर अपनी किडनी बेची है. पुलिस ने अब तक इस रैकेट से किडनी ट्रांसप्लांट के लिए ज़रूरी कागज़ात, फर्जी वोटर आई कार्ड, फोटोग्राफ, मेडिकल रिपोर्ट, इलैक्ट्रानिक गैजेट्स और क़रीब दो लाख रुपए बरामद किए हैं. फिलहाल इस सिलसिले में सिर्फ़ दिल्ली ही नहीं, बल्कि कोलकाता, चेन्नई समेत देश के कई दूसरे शहरों में भी छापेमारी का सिलसिला जारी है.

अपोलो अस्पताल का बयान

इस पूरे मामले में अपोलो अस्पताल ने एक अधिकारिक बयान जारी करते हुए कहा “पुलिस ने हमसे एक दिन पहले एक किडनी रैकेट को लेकर मुलाकात की. हमने पुलिस को सहयोग किया. और पुलिस ने जो जानकारी हमसे मांगी वो हमने उन्हें मुहैया कराई. हमारे यहां जो भी किडनी ट्रांसप्लांट होती है, वो सभी जरुरी ड़ॉक्यूमेंट के साथ ही की जाती है. हम कानूनी प्रकिया के तहत काम करते हैं, हमे इस घटना की जानकारी नहीं थी. पकड़े गए दोनों पीएस अपोलो के स्टॉफ नहीं है बल्कि डॉक्टरों के पीएस है. हम दिल्ली पुलिस से इस मामले में कड़ी कार्रवाई चाहते हैं.”

असल में इस सिलसिले में अब तक गिरफ्तार पांच लोगों में दो ऐसे हैं जो अपोलो में डॉक्टरों के पीएस के तौर पर काम करते हैं. और इन्हीं के ज़रिए अब तक अपोलो में किडनी चुराने और उसे आगे बेचने का काम चल रहा था. और ऐसा तब था, जब ऑर्गन डोनेशन को लेकर बेहद कड़े सरकारी कानून मौजूद हैं.

 

 डॉक्टर हैं पुलिस के रडार पर
दिल्ली पुलिस को ज्वाइंट सीपी आरपी उपाध्याय का कहना है कि पुलिस की टीमें कोलकाता और चैन्नई के अलावा दिल्ली के कई इलाकों में छापेमारी कर रही हैं. अपोलो हॉस्पिटल की मुश्किल आने वाले दिनों में बढ़ सकती है क्योंकि असपताल के कुछ और स्टाफ मेंबर और डॉक्टर भी पुलिस के रडार पर हैं.

क्या कहता है एक्ट

ह्यूमन आर्गन ट्रांसप्लांट एक्ट 1994 के मुताबिक सिर्फ़ खून के रिश्ते वाले लोग ही अपनी आर्गन डोनेट कर सकते हैं.

कमेटी की मौजूदगी और डॉकटरों की निगरानी में ही ट्रांसप्लाट प्रकिया की जा सकती है.

किडनी डोनेशन सिर्फ माता पिता भाई बहन और दादा दादी एक दूसरे को कर सकते हैं.

किडनी डोनेशन के लिए वकयादा हर अस्पताल में एक असिसमेंट कमेटी मौजूद होती है.

किडनी ट्रांसप्लाट प्रकिया के दौरान वीडियो ग्राफी करना बेहद जरुरी है.