High Court Decision On Divorce : तलाक पर हाईकोर्ट का अहम फैसला, बहू द्वारा सास-ससुर की उचित देखभाल नहीं करना क्रूरता नहीं, ख़ारिज की याचिका, जानें मामला

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Allahabad High Court, High court Decision On Divorce, High Court Divorce Decision : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि यदि कोई बहू अपने सास-ससुर की उचित देखभाल नहीं करती है, तो इसे ‘क्रूरता’ नहीं माना जा सकता। इस आधार पर पति अपनी पत्नी से तलाक नहीं ले सकता। इस फैसले के तहत हाईकोर्ट ने पति द्वारा दाखिल की गई तलाक की अर्जी को खारिज कर दिया है।

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यह मामला मुरादाबाद का है, जहां पति ज्योतिष चंद्र थपलियाल ने अपनी पत्नी के खिलाफ तलाक की अर्जी दाखिल की थी। उनका आरोप था कि उनकी पत्नी उनके माता-पिता की उचित देखभाल नहीं करती है और उन्हें अपनी पत्नी के इस रवैये से मानसिक परेशानी हो रही है।

High Court Decision On Divorce : अदालत की सुनवाई

इस मामले की सुनवाई जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की डिवीजन बेंच में हुई। पति की ओर से दलील दी गई कि उनकी पत्नी का अपने सास-ससुर के प्रति व्यवहार ठीक नहीं है, जोकि उनके लिए असहनीय हो गया है। इसी आधार पर उन्होंने तलाक की मांग की थी।

High Court Decision On Divorce : हाईकोर्ट का फैसला

हालांकि, हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा कि किसी भी महिला के ससुराल पक्ष के प्रति उसके व्यवहार को ‘क्रूरता’ के रूप में नहीं देखा जा सकता है, जब तक कि उसका व्यवहार अत्यधिक आपत्तिजनक न हो। अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि अगर पति खुद अपने माता-पिता से अलग रहता है और फिर भी पत्नी से उनकी सेवा व उचित देखभाल की उम्मीद करता है, तो उसकी दलील कमजोर हो जाती है।

High Court Decision On Divorce : अदालत की टिप्पणी

अदालत ने कहा, “पति का अपनी पत्नी से यह अपेक्षा करना कि वह अपने सास-ससुर की सेवा करे, तब गलत है जब पति खुद अपने माता-पिता के साथ नहीं रहता। ऐसे में यह कहना कि पत्नी का व्यवहार ‘क्रूरता’ है, न्यायसंगत नहीं है।” अदालत ने यह भी कहा कि किसी महिला को उसकी मर्जी के खिलाफ अपने ससुराल के सदस्यों की सेवा करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

मुरादाबाद फेमिली कोर्ट के फैसले की पुष्टि

हाईकोर्ट ने मुरादाबाद फेमिली कोर्ट के प्रिंसिपल जज के उस फैसले को भी बरकरार रखा, जिसमें उन्होंने पति की तलाक की अर्जी को खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट के अनुसार, मुरादाबाद फेमिली कोर्ट का फैसला कानून के अनुरूप है और इसमें हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।

इस फैसले का महत्व यह है कि कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि पति और पत्नी के बीच संबंधों में किसी भी तरह की समस्याओं के लिए पत्नी पर आरोप लगाने से पहले यह देखना जरूरी है कि पति का खुद का आचरण कैसा है। हाईकोर्ट के इस फैसले से यह संदेश भी मिलता है कि विवाह केवल पति और पत्नी के बीच का संबंध नहीं है, बल्कि इसमें दोनों के परिवारों के प्रति भी जिम्मेदारियों की समझ होनी चाहिए।