Allahabad High Court, High Court order, Live-In Relationship : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। जिसमें उन्होंने बालिग को उसकी मर्जी के अनुसार अपनी पसंद के साथ रहने या शादी करने का अधिकार मान्यता दी है। यह फैसला वयस्क याचियों के खिलाफ अपहरण के आरोप में दर्ज एफआईआर को रद्द करने के साथ दिया। साथ ही एसपी और एसएचओ को याचियों को जहां चाहे जाने देने और उनकी सुरक्षा करने का भी निर्देश दिया।
Marriage Relationship : नागरिक को जीवन में मिले मूल अधिकार का उपयोग करने का पूरा अधिकार
हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी वयस्क नागरिक को उसके जीवन में मिले जीवन के मूल अधिकार का उपयोग करने का पूरा अधिकार है, और अलग मत होने के कारण उसे किसी और व्यक्ति की हत्या करने का कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट ने सरकार को मानव जीवन की रक्षा करने का दायित्व सौंपा है। कोर्ट ने एसपी व एसएचओ को याची को जहां चाहे जाने देने व उनकी सुरक्षा करने का निर्देश दिया
यह फैसला एक मामले को लेकर सुनाया गया था, जिसमें एक वयस्क लड़की ने अपने चाचा और परिवार से जान का खतरा बताया था, लेकिन मजिस्ट्रेट ने उसकी शिकायत को नजरअंदाज करके उसे लोगों के हवाले कर दिया था। हाईकोर्ट ने इस मजिस्ट्रेट की आलोचना की और कहा कि उसने यह फैसला गलती से किया था।
याची श्रीमती नाजिया अंसारी व हिदायत की याचिका के अनुसार याची का कहना था कि उसकी आयु 21 वर्ष है और वह बालिग है। उसने अपनी मर्जी से घर छोड़ा और हैदराबाद में 17 अप्रैल 24 को मुस्लिम रीति से शादी की है। तेलंगाना राज्य वक्फ बोर्ड के सी ई ओ ने शादी का प्रमाणपत्र भी दिया है।
Marriage Relationship : यह है मामला
इसके बावजूद चाचा द्वारा अपहरण के आरोप में दर्ज एफआईआर के तहत पुलिस ने याची के पति को गिरफ्तार कर लिया और याची को अवैध अभिरक्षा में ले लिया। मजिस्ट्रेट के आदेश से उसे उसकी मर्जी के खिलाफ उसके चाचा को सौंप दिया गया, जिससे उसकी हत्या की उसने आशंका जताई थी। कोर्ट ने कहा चाचा को एफआईआर दर्ज कराने या धमकाने का अधिकार नहीं था। ऐसी एफआईआर अवैध व अधिकारातीत है। हाईकोर्ट ने मामले को गंभीर माना है।
Marriage Relationship :याचियों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द
इसके अलावा, कोर्ट ने याचियों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए उन्हें उनकी सुरक्षा का जिम्मा दिया है। यह फैसला मानव जीवन की महत्वपूर्णता को साबित करता है और दरअसल, किसी भी वयस्क को उसकी मर्जी के खिलाफ किसी के साथ रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
इस फैसले के माध्यम से, हाईकोर्ट ने समाज में एक महत्वपूर्ण संदेश भेजा है कि अपनी मर्जी से रहने या शादी करने का हक सभी को होता है, और किसी भी व्यक्ति को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। यह फैसला नागरिकों के अधिकारों की सम्मान करता है और सामाजिक समानता को मजबूत करता है।