नई दिल्ली. आज कल समाज में महिलाओं के ऊपर पढ़ने बच्चा पैदा करने जैसे मामलों को लेकर दबाव बनाया जा रहा है। इसी पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला आया है। जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने हाल ही में एमएड छात्रा की याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान ने एक समतावादी समाज की परिकल्पना की है, जिसमें नागरिक अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर सकते हैं। समाज के साथ-साथ राज्य भी उन्हें इसकी अनुमति देता है। कोर्ट ने आगे कहा कि सांविधानिक व्यवस्था के मुताबिक किसी को शिक्षा के अधिकार और प्रजनन स्वायत्तता के अधिकार के बीच किसी एक का चयन करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
ये हैं पूरा मामला
महिला याचिकाकर्ता ने दिसंबर, 2021 में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में दो साल के एमएड कोर्स के लिए दाखिला लिया था। उन्होंने मातृत्व अवकाश के लिए यूनिवर्सिटी डीन और कुलपति के पास आवेदन किया था। इसे 28 फरवरी को खारिज कर दिया गया।
उपस्थिति मानक को बनाया आधार
कक्षा में आवश्यक रूप से उपस्थिति मानक पूरा करने को आधार बनाकर विवि प्रबंधन ने याचिकाकर्ता को मातृत्व अवकाश का लाभ देने से इन्कार कर दिया था। इसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
यूनिवर्सिटी प्रबंधन का फैसला रद्द
हाईकोर्ट ने यूनिवर्सिटी प्रबंधन का फरवरी, 2023 का फैसला रद्द करते हुए कहा कि वह याचिकाकर्ता को 59 दिन के मातृत्व अवकाश का लाभ देने पर पुनर्विचार करे। साथ ही, निर्देश दिया कि अगर इसके बाद कक्षा में आवश्यक 80 प्रतिशत उपस्थिति का मानक पूरा होता है तो उसे परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाए।
सम्मान के साथ जीने का अधिकार
अदालत ने यह भी कहा, विभिन्न फैसलों में माना गया है कि कार्यस्थल में मातृत्व अवकाश का लाभ लेना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मान के साथ जीने के अधिकार का एक अभिन्न पहलू है।