रायपुर। छत्तीसगढ़ में नरवा, गरवा, घुरवा, बारी योजना, गोधन न्याय योजना, और रोका-छेका अभियान लागू कर पारंपरिक संसाधनों को पुनर्जीवित कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाया जा रहा है। गौठानों को ग्रामीण आजीविका केंद्र के रूप में विकसित किया गया है। इसी कड़ी में हरेली के दिन से गौठानों में 4 रुपए प्रति लीटर की दर से गो-मूत्र की खरीदी योजना की शुरुआत की गई है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने देश की अपनी तरह की पहली और अनूठी गौमूत्र खरीदी योजना की शुरुआत की। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल प्रदेश के पहले गौमूत्र विक्रेता बने। निधि स्व सहायता समूह, चंदखुरी को सीएम भूपेश बघेल ने गौमूत्र विक्रय किया है। इस दौरान सीएम भूपेश को 5 लीटर गौमूत्र बेचने पर 20 रुपए की आमदनी हुई। इसके बाद विक्रय रजिस्टर पर मुख्यमंत्री ने हस्ताक्षर किए। इस योजना की मदद से प्रदेश में जैविक खेती और आर्थिक सशक्तिकरण के नए अध्याय की शुरूआत हुई।
गौमूत्र से महिला स्व-सहायता समूह की मदद से जीवामृत और कीट नियंत्रक उत्पाद तैयार किये जाएंगे। इससे ग्रामीणों को रोजगार और आय के नया जरिया मिलने के साथ जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा और कृषि लागत कम होगी। मुख्यमंत्री ने कहा है कि ”परंपराओं को आधुनिक जरूरतों के अनुसार ढालना सामूहिक उत्तरदायित्व का काम है। आशा है सभी प्रदेशवासी अपने पारंपरिक लोक मूल्यों को सहेजते हुए गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ की परिकल्पना को साकार रूप देने के लिए सहभागी बनेंगे।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री निवास में छत्तीसगढ़ के प्रथम त्यौहार हरेली के अवसर पर कृषि यंत्रों की पूजा अर्चना की। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गौमाता को चारा खिलाया और उसकी पूजा की। उन्होंने स्व सहायता समूहों को प्रोत्साहन राशि का वितरण किया। मुख्यमंत्री ने चिन्हित गौठानों में गौमूत्र क्रय करने, गौमूत्र टेस्टिंग किट का शुभारंभ किया। मुख्यमंत्री निवास में आयोजित हरेली तिहार कार्यक्रम में राउत नाचा, करमा नृत्य, आदिवासी नृत्य के लोक कलाकार परंपरागत छत्तीसगढ़िया वाद्य यंत्रों के धुन पर थिरके।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रदेशवासियों को हरेली तिहार की बधाई और शुभकामनाएं दी है। मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि हरेली छत्तीसगढ़ के जन-जीवन में रचा-बसा खेती-किसानी से जुड़ा पहला त्यौहार है। इसमें अच्छी फसल की कामना के साथ खेती-किसानी से जुड़े औजारों की पूजा की जाती है। इस दिन धरती माता की पूजा कर हम भरण पोषण के लिए उनका आभार व्यक्त करते हैं। गांव-गांव में हरेली के पर्व को बड़े उत्साह और उमंग से मनाया जाता है। नागर, गैंती, कुदाली, फावड़ा समेत कृषि के काम आने वाले सभी तरह के औजारों की साफ-सफाई और पूजा की जाती है। पारंपरिक तरीके से लोग गेड़ी चढ़कर हरेली की खुशियां मनाते हैं। प्राचीन मान्यता के अनुसार सुरक्षा के लिए घरों के बाहर नीम की पत्तियां लगाई जाती हैं। छत्तीसगढ़ की इस गौरवशाली संस्कृति और परम्परा को सहेजने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने हरेली त्यौहार के दिन सार्वजनिक अवकाश भी घोषित किया है।