देश में दीपावली पर्व का इंतजार हर किसी को रहता है. दीपावली पर्व पर एक महीने पहले से ही लोग घरों को सजाने में जुट जाते हैं. खरीदारी करने लगते हैं. एक दूसरे को बधाई गिफ्ट भेजते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि रोशनी के इस पर्व पर जहां पूरा भारत जगमग जगमग करता है. लोग पटाखे फोड़ते हैं. वहीं दूसरी और यूपी के मिर्जापुर में चौहान समाज ऐसा है, जो इस दिन को शोक दिवस के रूप में मनाता है.
मड़िहान तहसील के राजगढ़ इलाके में अटारी गांव और उसके आस-पास बसे लगभग आधा दर्जन गांव मटिहानी, मिशुनपुर, लालपुर, खोराडीह में दिवाली का त्योहार शोक दिवस के रूप में मनाया जाता है. इन गांवों में रहने वाले चौहान समाज की लगभग 8000 की आबादी सैकड़ों साल से यह परंपरा निभाती चली आ रही है. पीढ़ी दर पीढ़ी इस दीपावली के दिन शोक मनाने की परंपरा का निर्वाह आज भी यह समाज बखूबी कर रहा है.
दरअसल, चौहान समाज के लोग खुद को अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान का वंशज बताते हैं. उनका मानना है कि दीपावली के दिन ही मुहम्मद गोरी ने सम्राट पृथ्वीराज चौहान की हत्या की थी. उनके शव को गंधार ले जा कर दफनाया था. इसी लिए इस समाज के लोग इस दिन शोक मनाते हैं. चौहान समाज के लोग संबसे अधिक अटारी ग़ांव में रहते हैं.
चौहान समाज के अध्यक्ष धनीराम का कहना है कि हमारे पूर्वज को इसी दिन मुहम्मद गोरी ने मारा था. इस लिए इस दिन हम लोग घरों में कोई रोशनी नहीं करते और शोक मनाते हैं. हम लोग दीपावली के बजाय एकादशी (देव दीपावली) के दिन दीपावली मनाते हैं और उस दिन घरों को रोशन करते हैं. चौहान समाज के लोग संबसे अधिक अटारी ग़ांव में रहते हैं. यहां के स्थानीय लोग आज भी पूर्वजों के इस परंपरा का निर्वाह करते आ रहे हैं.
तेजादेवी कहती हैं कि हम लोग दीपावली नहीं मनाते हैं. शोक मानते हैं. क्योंकि पृथ्वीराज की हत्या हुई थी इसलिए एकादशी के दिन दीपावली मना लेते हैं. राजगीर सिंह चौहान कहते हैं कि पृथ्वीराज को आंख फोड़ कर गजनी में ले जाया गया. वहां पर हत्या कर दी गई थी. इसी घटना को लेकर दीपावली के दिन शोक मनाते हैं. हम लोग उनके ही खानदान के अग्नि वंशी चौहान हैं.