आदिशक्ति माँ महामाया देवी की पौराणिक नगरी रतनपुर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसका इतिहास प्राचीन और गौरवशाली है। छत्तीसगढ़ में त्रिपुरी कलचुरियों की एक शाखा ने दीर्घकाल तक रतनपुर को अपनी राजधानी बनाकर शासन किया। यह कल्चुरी वंश के राजा रत्नदेव प्रथम द्वारा निर्मित है, इसे 11 वीं शताब्दी में बनाया गया था। राजा रत्नदेव प्रथम ने मणिपुर नामक गांव को रतनपुर नाम देकर अपनी राजधानी बनायीं। एक वीरा देवी, इसका निर्माण रत्नदेव तृतीय के मंत्री गंगाधर राव ने बनवाया था।
मंदिर का मंडप नागर शैली में बनी है, जो 16 स्तम्भों पर टिका हुआ है। गर्भगृह में आदिशक्ति माँ महामाया की साढ़े तीन फ़ीट ऊँची प्रस्तर की भव्य प्रतिमा विराजमान है। माँ के प्रतिमा की पृष्ठ भाग में माँ सरस्वती की प्रतिमा होने की मान्यता है, जो वर्तमान में विलुप्त मानी जाती है।
यह मान्यता है की भगवान शिव माता सती की मृत्यु से व्यथित होकर उनके शरीर को लेकर ब्रम्हाण्ड में भटक रहे थे। जिन-जिन स्थानों पर माता सती के अंग गिरे वहां शक्तिपीठ बन गए। जिसे शक्तिपीठ की मान्यता मिली। माता सती की दाहिना स्कन्ध महामाया मंदिर में गिरा था। इसे कौमारी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। इस कारण माता के 51 शक्तिपीठों में इस स्थल को शामिल किया गया है।
राजा रत्नदेव प्रथम 1045 ई. में मणिपुर नामक गांव में एक वट वृक्ष पर रात्रि विश्राम किया। अर्द्धरात्रि में जब राजा की आँख खुली तो उन्होंने पाया कि वट वृक्ष के नीचे अलौकिक प्रकाश में आदिशक्ति श्री महामाया देवी की सभा लगी हुई है। यह देखकर वे विस्मृत होकर अपनी चेतना खो गए। सुबह हुई तो वे अपनी राजधानी तुमान के लिए लौट गए और उन्होंने अपनी राजधानी रतनपुर में बनने का संकल्प लेकर 1050 ई. में आदिशक्ति श्री महामाया देवी का भव्य मंदिर का निर्माण कराया।
कहते हैं जो भी इस मंदिर की चौखट पर आया वो खाली नहीं गया। जितनी अनोखी इस मंदिर की मान्यता है। उतनी अनोखी इस मंदिर की कहानी है। यहां बैठी मां महामाया देवी के आशीर्वाद से हर संकट दूर हो जाता है। कुंवारी लड़कियों को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। लोगों के सभी कष्ट दूर हो जाते है। देवी मां के इस मंदिर को 51 शक्ति पीठ में एक माना जाता है।
महामाया मंदिर रतनपुर, कैसे पहुंचे
वायु मार्ग से – यह स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट, रायपुर से 141 किमी की दूरी पर स्थित है। जहाँ के लिए दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, बैंगलोर आदि के लिए सीधी विमान सेवा उपलब्ध है।
सड़क मार्ग से – बिलासपुर से 25 किमी की दूरी पर है, रतनपुर के लिए हर एक घंटे में बस सेवा निरंतर उपलब्ध है।
रेल मार्ग से – बिलासपुर रेलवे स्टेशन, जोकि रतनपुर से 25 किमी की दूरी पर है। यह सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है। यह रेल जोन भी है। सभी रूट के लिए गाड़ी मिलेगी।
नोट- सभी भक्तों के लिए मुफ्त दर्शन है, कोई पूर्व बुकिंग की आवश्यकता नहीं है। मंदिर सुबह 6:00 बजे खुलता है। दोपहर 12 :00 से 12 :30 तक भोग समय में मंदिर का पट बंद रहता है। सामान्य दिनों में 08 :00 PM बजे को मंदिर बंद हो जाता है। नवरात्रि के दिनों में 12:00 बजे तक मंदिर खुला रहता है। सामान्य दिनों में दर्शन में 30 -45 मिनट लगता है। नवरात्रि के दौरान भारी भीड़ के कारण अधिक समय लग सकता है।