“रिंग के खेल” मे शामिल,, वन विभाग का एक ओहदेदार अधिकारी ..

अम्बिकापुर(खबरपथ)- जंगली हाथी की तरह मदमस्त चाल चलने वाला वन विभाग और उसके अधिकारी,, वन ठेकेदारो की मनमानी के साथ खुद इतने मस्त हो गए है,, कि वो शासन को हो रहे लाखो करोडो के नुकसान की मलाई भी कंबल ओढ कर खा रहे है। दरअसल वर्तमान के सरगुजा वन मंडल मे लकडी निलामीरिंग के इर्द गिर्द होती है,, जिसका बादशाह वन विभाग एक बडा अफसर होता है,, तो बजीर एक वन ठेकेदार।

             छत्तीसगढ के सरगुजा मे सागौन, सरई औऱ साल जैसे लडकियो के जंगल काफी क्षेत्रफल मे थे । लेकिन पिछले कुछ वर्षो मे कभी लडकी तस्करो ने तो कभी राजस्व की मंशा रखने वाले वन विकास निगम ने इसे समाप्त करने की पुरजोर कोशिश की है। खैर जिस राजस्व प्राप्ति की मंशा से वन विभाग के अफसर इसे कटवा रहे है,, वो पूरी होती दिखाई नही दे रही है,, क्योकि जिस बेशकीमती लकडियो की कटाई से विभाग राजस्व का रास्ता बनाता है,, उसको तो रिंग के खेल बिगाड देता है।

            दरअसल सरगुजा वन मंडल मे एक ओहदेदार अधिकारी के आने के बाद वन ठेकेदारो की चांदी हो गई है। पहले जंहा गुण्डे मवालियो और छुटभईया नेताओ के दम पर वन ठेकेदार लडकियो की निलामी मे अपनी धाक जामाते थे,, वही अब उनके साथ सिर्फ गुण्डे और छुटभईया नेता ही नही,, बल्कि विभाग के एक ओहदेदार अधिकारी भी है। जिनकी बदौलत वन ठेकेदार निलामी के पहले ही रिंग बनाकर लडकी की निलामी कर लेते है। और उस अधिकारी की अर्थ व्यवस्था करके,, अपने लिए फर्श तैयार कर लेते है।

           जानकारो के मुताबिक वन ठेकेदार निलामी प्रकिया के दिन केवल औपचारिक रुप से ही निलामी भाग लेते है,, क्योकि काष्ठागार मे रखी बेशकीमती लडकी पहले ही निलाम हो जाती है,, जिसके लिए उस ओहदेदार अधिकारी के मौखिक आदेश पर एक कर्मचारी,, वन ठेकदार को पहले से ही निलामी के लिए रखी लकडियो की रेट लिस्ट थमा देता है। और फिर शहर टिंबर भवन मे,, सरगुजा टिंबर एसोसिएसन, बिलासपुर, रायपुर समेत पडोसी राज्य झारखंड और उत्तरप्रदेश के व्यापारी इकट्ठा होते है। औऱ फिर शुरु होती है,, अवैध निलामी,, जिसे वन ठेकेदारो की भाषा मे रिंग का खेल कहा जाता है।

क्या है रिंग का खेल

 

वैसे तो आपने इस खेल को हमेशा सर्कस मे देखा होगा,, लेकिन अंबिकापुर मे ये खेल देखना है तो टेंट पंडाल के साए मे होने वाले सर्कस मे जाने की जरुरत नही है क्योकि वन विभाग निलामी मे ये खुले आम होता है। दरअसल यंहा होने वाले रिंग के खेल की प्रकिया निलामी के दो दिन पहले शुरु हो जाती है,, और इस प्रकिया मे वन विभाग से बादशाह और वन ठेकेदार के बजीर की भूमिका काफी अहम होती है, वन अधिकारी जंहा इन्हे दो दिन पहले निलामी की लकडियो की रेट लिस्ट मुहैया कराता है,, वही वन ठेकेदार इस लिस्ट और अपने प्यादो के साथ पंहुच जाता है उस फड मे जंहा ये लडकियां रखी होती है,, फिर शुरु होता है रिंग का खेल,, इस रिंग के खेल मे सभी व्यापारी आपसी सहमति से अपने अपने लाट(लकडियो का समूह) पसंद करते है,, और फिर पहले से प्राप्त लिस्ट मे उन उन व्यापारियो का नाम लिख जाता है। जिसके बाद ये सभी टिंबर भवन के गुप्त कमरे मे पंहुचते है,, उसके बाद शुरु होती है मित्रवत आपसी और अवैध बोली।,, इस आपसी बोली मे विभाग से प्राप्त लिस्ट और अवैध निलामी मे लगाई गई बोली के बीच , आए रुपयो के अंतर को संबधित व्यापारी एसोसिएसन के पास जमा कर देता है। और वन विभाग की असल और औपचारिक बोली समाप्त होने के बाद ये रकम सभी व्यापारी आपस मे बराबर बराबर बांट लेते है। जिसमे से वन विभाग के अधिकारी और कुछ तथाकथित नेता और इस खेल को संरक्षण देने वाले कुछ असमाजिक तत्वो को देने वाली रमक निकाल कर उनको बांट दी जाती है। जिससे वन विभाग को होने वाले राजस्व प्राप्ति की रकम भी चोर चोर मौसेरे भाईयो मे बंट जाती है,, और निलामी मे आपसी संघर्ष(बोली) का फायदा जो फायदा वन विभाग को राजस्व के रुप मे मिलना चाहिए वो नही मिल पाता है।