लंदन. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित कोविड-19 टीका 56-69 आयु समूह के लोगों तथा 70 साल से अधिक के बुजुर्गों की रोग प्रतिरोधक क्षमता में महत्वपूर्ण सुधार करने में कारगर रहा है. इस टीके से संबंधित यह जानकारी गुरुवार को पत्रिका ‘लैंसेट’ में प्रकाशित हुई जिसका विकास भारतीय सीरम संस्थान के साथ मिलकर किया जा रहा है. अध्ययन में 560 स्वस्थ वयस्कों को शामिल किया गया और पाया गया कि ‘सीएचएडीओएक्स 1 एनकोव-19’ नाम का यह टीका युवा वयस्कों की तुलना में अधिक आयु समूह के लोगों के लिए अधिक उत्साहजनक है. इसका मतलब है कि यह टीका अधिक आयु समूह के लोगों में कोरोना वायरस के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर सकता है.
अनुसंधानकर्ताओं ने उल्लेख किया कि यह निष्कर्ष उत्साहजनक है क्योंकि अधिक आयु समूह के लोगों को कोविड-19 संबंधी जोखिम अधिक होता है. इसलिए कोई ऐसा टीका होना चाहिए जो अधिक आयु समूह के लोगों के लिए कारगर हो. ऑक्सफोर्ड टीका समूह से जुड़े डॉक्टर महेशी रामासामी ने अधिक आयु समूह के लोगों में टीके के अच्छे परिणामों पर खुशी व्यक्त की. ब्रिटेन ऑक्सफोर्ड टीके की 10 करोड़ खुराक का पहले ही ऑर्डर दे चुका है.
विशेषज्ञों का मानना है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता(आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) की मदद से बड़े विनिर्माण क्षेत्रों में कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने और कोविड-19 वैक्सीन के निर्माण में तेजी आ सकती है. पूरी दुनिया की प्रयोगशालाओं में इस घातक महामारी की वैक्सीन खोजी जा रही है जिसके कारण अब तक 5.6 करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं और 13.4 लाख लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. हाल ही में,एक 10 दिवसीय विज्ञान महोत्सव बर्लिन विज्ञान सप्ताह में विशेषज्ञों के एक पैनल ने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता(आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) और मशीन लर्निंग (एमएल) जैसी तकनीकें विभिन्न प्रयोगों से एकत्र अनगिनत जानकारियों को बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत कर सकती है जिन्हें मानव मस्तिष्क याद रखने में असफल हो जाता है.
जर्मनी की दवा कंपनी सर्टोरियस के रेने फेबर ने कहा कि कोविड-19 की वैक्सीन खोजने और अनुसंधान में एक अन्य महत्वपूर्ण तकनीक मददगार साबित हो सकती है वह है ‘ऑटोमेशन’. मानवों पर इस वैक्सीन के प्रयोग अंतिम चरण की ओर बढ़ रहे हैं . ऐसे में विशेषज्ञों का कहना है कि क्लीनिकल और प्रतिरक्षा विज्ञान संबंधी आंकड़ों का विश्लेषण करने में एआई काफी मददगार हो सकती है. फेबर ने बताया कि डिजिटलीकरण और एआई जैसी तकनीकों से वास्तविक समय में आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए विश्लेषण के साथ ही अंतिम परिणाम गलत मिलने से पहले ही वैक्सीन की निर्माण प्रक्रिया में बदलाव करना या कोई भविष्यवाणी करना संभव होगा.