ऐपल के सीईओ टिम कुक ने अपनी संपत्ति का अधिकांश सामाजिक कार्यों के लिए देने की घोषणा कर एक विरल उदाहरण सामने रखा है। यह आज के समय में बहुतों को हैरान कर सकता है। लेकिन जो लोग उनके मिजाज को थोड़ा भी समझते हैं, वे इसलिए हैरान न होंगे कि कुक उन लोगों से एकदम अलग हैं जो हरदम पैसे के पीछे सिर्फ इसलिए भागते रहते हैं ताकि खुद पर खूब खर्च कर सकें।
चैरिटी के बजाय अपने प्रफेशनल काम को ही अच्छी से अच्छी तरह करने पर यकीन रखने वाले स्टीव जॉब्स के बाद टिम कुक ने उनकी कुर्सी संभाली थी। इसके एक साल बाद 2012 में ही कुक ने स्टैनफर्ड अस्पताल को 5 करोड़ डॉलर का दान किया था। इस बार उनकी योजना कुछ हटकर है। वह न सिर्फ दान के लिए चेक काटना चाहते हैं, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेंगे कि इस पैसे के इस्तेमाल के लिए बाकायदा एक सिस्टम बने।
दरअसल, कुक ने परोपकार की उस परंपरा को ही शानदार ढंग से आगे बढ़ाया है जिसे माइक्रोसॉफ्ट के फाउंडर बिल गेट्स और बर्कशायर हैथवे के वारेन बफे ने 2010 में शुरू किया था। इन्होंने सभी अमेरिकी अरबपतियों से अपनी आधी संपत्ति दान करने की अपील की थी। अपील कारगर भी रही क्योंकि फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग, टेस्ला के सीईओ एलन मस्क और ईबे के फाउंडर पियरे ओमिडयार जैसे कई बड़े लोग इसके लिए राजी हो गए थे।
अलीबाबा के फाउंडर जैक मा ने भी पिछले साल चैरिटी की शुरुआत की है। भारतीय कंपनियों के सीईओ भी क्या कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी की औपचारिकता से ऊपर उठकर कभी इस तरह का कुछ करेंगे? हमारे देश में दान की बड़ी समृद्ध परंपरा रही है। दधीचि ने तो अपनी हड्डियां तक दान कर दी थीं। पुण्य की चाहत में ही सही, पुराने रईस लोग सराय, धर्मशाला, स्कूल, अनाथालय और अस्पताल बनवाने में खूब दिलचस्पी लेते थे।
लेकिन, अभी इस मामले में जबर्दस्त गिरावट देखी जा रही है। यहां का कोई उद्यमी कभी कुछ करना भी चाहता है तो उसकी नजर किसी विदेशी युनिवर्सिटी की चेयर पर जाती है। बात सिर्फ कुक से सीखने की नहीं, अगली पीढ़ी को एक अच्छी विश्वदृष्टि देने से भी जुड़ी है। काश, वह समझ सके कि बाप के कमाए पैसों पर इठलाने से ज्यादा खुशी अपनी कमाई संपदा को समाज कल्याण के लिए समर्पित कर देने में है।