जांजगीर चांपा। जिले के कलेक्टर यशवंत कुमार इन दिनो कार्यालय में कम अखबारों के पन्नो पर ज्यादा सुखियां बटोर रहे है। जिले मे करोड़ो के प्रोजेक्ट कई महीनो से रूके पड़े इस ओर कलेक्टर का ध्यान नही है. और न ही इस मामले में कभी विभाग के अधिकारीयो से जानकारी लिये है। हां! लाॅक डाउन मे जरूर एक दिन के लिए चौक चौराहो मे फोटो खिचातें जरूर देखे गये है। जो दूसरे दिन अखबारो में सुर्खियां बनी कि कलेक्टर लाॅक डाउन में व्यवस्था बनाने सड़क पर उतरें..
जांजगीर चांपा जिले मे करोड़ो के प्रोजेक्ट है जो कई महीनो से रूके पड़े है उन जनहित कार्यो को देखने वाला कोई नही है। जिला मुख्यालय में 40 करोड़ से ज्यादा का जल आवर्धन योजना, खोखसा फाटक व चांपा में वोआरबी निर्माण, स्वीमिंक पुल, खेल स्टेडियम, या जिले के कोविड हास्पिटल की अव्यवस्था हो या कहे जिले के रोड़ की हालत…जिले मे दर्जनो ऐसे निर्माण कार्य है जो किसी न किसी कारणो से कई महीनो रूके पड़ें। जनता के लिए अच्छा होता कि इन निर्माण कार्यो को जल्द से जल्द पूरी कराने मे ध्यान देते. लेकिन कलेक्टर का ध्यान इस ओर नही है।
जिले की जनता को आये दिन गर्मीयो मे पीने का पानी, आवागमन के लिए कई परेशानीयो को सामना करना पड़ रहा है। जिले के कोविड हाॅस्पिटल की बात करे तो मरीज अव्यवस्था से परेशान हाॅस्पिटल से भाग रहे हैं. न ही पर्याप्त वेटींलेटर की व्यवस्था है और न ही समय पर आक्सीजन की सुविधा प्राप्त होती है। जिला मुख्यालय में ऐसे कई बड़े प्रोजेक्ट है जिसका निर्माण रूका हुआ है। जिले मे किसान भी इन दिनो खासे परेशान है। बाढ़ की वजह से फसल बर्बाद हो गया है जिनका मुआवजा देने वाला कोई नही है। वही खाद बीज के भी भटक रहे हैं। पिछले दिनो कई ब्लाक मे किसानो को बीज निगम द्वारा अमानक बीज का वितरण कर दिया गया जिसके कारण खेतो मे धान का पैदावार नही हुआ, लेकिन अधिकारी बीज वितरक फर्म के खिलाफ कार्यवाही के बजाह किसानों को ही दोषी ठहरा दिया।
ऐसे कई गंभीर मामले है जिनसे जिले के कलेक्टर अनजान है। जिले में करोड़ो क धान संग्रहण केन्द्रो पर सड़ कर बर्बाद हो गया लेकिन अधिकारी इस मामले मे भी मौन बैठे है। ऐसा लगता है जैसे जांजगीर चांपा कलेक्टर को आम जनता से कोई सरोकर नही है. अपना ड्यूटी करने के अलावा आम लोगो के समस्या से कोई लेना देना नही है। जिले मे इन दिनो स्वास्थय व्यवस्था की हालत इतना खराब है कि इस ओर देखने वाला कोई नही है। जिले मे राज्य व केन्द्र सरकार के विभिन्न योजना सिर्फ कागजो पर चल रहे हैं। जमीनी हकीकत की बात की जाय तो बदतर स्थिति है। कलेक्टर यशवंत कुमार को मिडिया से बातचीत से भी परहेज हैं। जब जिले के कलेक्टर को मिडिया से परहेज हो जो अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले के हालत क्या होगी.. क्योकि मिडिया की जिले के अव्यव्था को सामने लाकर अधिकारीयों को अवगत कराता हैं। अगर अधिकारी ही मिडिया से दूरी बना ले तो जिले की सही स्थिति का आंकलन कैसे लगा सकता है । अधिकारी जितनी जानकारी कलेक्टर के सामने बतायेगा कलेक्टर को भी उतना जानकारी होगा इस लिए जरूरी होता है कि जिले के कलेक्टर से मिडिया का तालमेल बेहतर हो।