पुराने रथ को ही संवार कर मनाया जाएगा विश्व प्रसिद्ध बस्तर का दशहरा..


फटाफट डेस्क – कोरोना महामारी के चलते विभिन्न गांव के ग्रामीणों ने बस्तर दशहरे हेतु रथ बनाने के लिए लकड़ी काटने से इंकार कर दिया है। वहीँ दूसरी तरफ लड़की आती भी है तो डेढ़ सौ कारीगर सिरहासार में कम से कम 25 दिन ठहर कर , जोखिम भरे वातावरण में रथ का निर्माण करेंगे, इससे निर्माणाधीन रथ को देखने लोगों की भीड़ भी जुटेगी। इन सबसे बचने का एक ही तरीका इस वर्ष नए रथ का निर्माण न करके जो पुराना रथ है उसे ही संवार कर दशहरा मनाया जाय। उक्त बातें बस्तर महाराज कमलचंद्र भंजदेव ने कही है। उन्होंने बताया कि बस्तर दशहरा 600 साल से भी अधिक पुराना है, और यह सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने वाली परम्परा है। परन्तु वैश्विक महामारी कोरोना के चलते बस्तर दशहरा मनाना औपचारिकता मात्र होगा। बस्तर दशहरा के लिए प्रतिवर्ष जगदलपुर, माचकोट , दरभा रेंज , के आलावा कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में कम से कम 200 पेड़ों की कटाई हो जाती है। इन पेड़ों को काटने के लिए अलनार , चितापुर , नगरनार , बिलोरी , पदमूर साईगुडा, नानगुर, पंडरिपाली, बड़े मेरठपाल, लेण्ड्रा, राजूर बड़े मारेंगा, कुरंदी, धनियालुर, खूंटपदर, बनियागांव, बोरगांव, भेजापदर, धनपूंजी सहिंत 30 से अधिक गांव के ग्रामीणों की सहभागिता होती है। 6 महीने पहले माचकोट वन परिक्षेत्र में सालवृक्ष की कूप कटाई हुई थी परन्तु कोरोना के कारण करीब 1000 घन मीटर इमारती काष्ट जंगल में ही पड़ी है। बस्तर दशहरा के लिए उपरोक्त गांवों के ग्रामीण ही लकड़ी काटते आए है। सामूहिक रूप से जंगल में जाना, एक तरफ से कोरोना महामारी को गले लगाने जैसी बात है।