फटफट डेस्क-कोरोना महामारी के कारण ज्यादातर देशों में पिछले कुछ महीनों से ऑनलाइन शैक्षणिक व्यवस्था पर जोर दिया जा रहा है, लेकिन एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध नहीं होने से विश्व में 40 करोड़ से अधिक बच्चे डिजिटल पढ़ाई करने में असमर्थ, कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेंस फाउंडेशन की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना महामारी में स्कूलों के बंद होने से दुनिया के क़रीब एक अरब बच्चों को शिक्षा तक पहुंच पाना संभव नहीं है . क्यूंकि हर किसी की पास मोबाइल फ़ोन और इंटरनेट की सुविधा नहीं होती, वही 7, 8 महीने में कोरोना की वजह से बहूत ज्यादा आर्थिक तंगी आ गई है जिसकी वजह से लोगों का पेट ही बड़ी मुश्किल से भर पा रहा है ऐसी स्थिति में बच्चो के लिए मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा कर पाना बहुत मुश्किल हो गया है । वहीं, 34.70 करोड़ बच्चे पोषाहार के लाभ से वंचित हैं. हैं.मौजूदा समय में बच्चों पर मंडरा रहे संकट पर चर्चा के लिए आयोजित दो दिवसीय डिजिटल शिखर सम्मेलन ‘लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन समिट’ में बुधवार को ‘फेयर शेयर फॉर चिल्ड्रेन- प्रिवेंटिंग द लॉस ऑफ अ जेनरेशन टू कोविड-19’ नामक यह रिपोर्ट जारी की गई.रिपोर्ट में बताया गया है कि जी-20 देशों द्वारा वित्तीय राहत के रूप में 8.02 हजार अरब डॉलर देने की घोषणा की गई थी, लेकिन उसमें से अभी तक केवल 0.13 प्रतिशत या 10.2 अरब डॉलर ही कोविड-19 महामारी के दुष्प्रभावों से लड़ने के मद में आवंटित किया गया है.इस शिखर सम्मेलन का आयोजन कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन द्वारा किया जा रहा है. ‘कोरोना महामारी की वजह से स्कूलों के बंद रहने से दुनिया के करीब एक अरब बच्चों की शिक्षा तक पहुंच संभव नहीं हो पा रही है. रिपोर्ट के मुताबिक, 34.70 करोड़ बच्चे स्कूलों के बंद होने से पोषाहार के लाभ से वंचित हैं.क्यूंकि स्कूलों में मध्यान भोजन के दौरान उन्हें पोषाहार भोजन दिया जाता था जो की अब उन्हें नहीं मिल पा रहा है , पिछले छह महीने में 5 साल से कम उम्र के 10 लाख 20 हजार से अधिक बच्चों के कुपोषण से काल के गाल में समा जाने का अनुमान है. टीकाकरण योजनाओं के बाधित होने से एक वर्ष या उससे कम उम्र के 8 करोड़ बच्चों में बीमारी का खतरा बढ़ गया है.नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने इस रिपोर्ट के निष्कर्षों को लेकर कहा, ‘पिछले दो दशकों में हम पहली बार बाल श्रम, गरीबी और स्कूलों से बाहर होने वाले बच्चों की बढ़ती संख्या को देख रहे हैं. कोविड-19 के दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए जो वादे किए गए थे, उस वादे को दुनिया की अमीर सरकारों द्वारा पूरा नहीं किया गया .’उन्होंने कहा, ‘दुनिया की सबसे अमीर सरकारें अपने आप को संकट से बाहर निकालने के लिए खरबों का भुगतान कर रही हैं. वहीं समाज के सबसे कमजोर और हाशिये पर पड़े बच्चों को अपने रहमोकरम पर छोड़ दिया गया है. इस निष्क्रियता का कोई विकल्प नहीं है.’सत्याथी ‘लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन’ के संस्थापक हैं.बता दें कि बीते अगस्त महीने में राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने एक सर्वे रिपोर्ट जारी किया था जिसमें बताया गया था कि भारत में केंद्रीय विद्यालय के 27 फीसदी बच्चों के पास ऑनलाइन क्लास के लिए फोन या लैपटॉप की सुविधा नहीं है. इस तरह बच्चों का भविष्य खतरे पर जाता हुआ दिखाई दे रहा है।