भोपाल से 45 कि.मी. की दूरी पर स्थित है साँची। साँची को पूर्व में ‘काकणाय’, ‘काकणादबोट’, ‘बोट-श्री पर्वत’ नामों से जाना जाता था। यहाँ स्थित स्मारकों का निर्माण तृतीय शती ईसा पूर्व से बारहवी शती ईस्वी. तक निरन्तर जारी रहा। साँची के पुराने स्मारकों के निर्माण का श्रेय मौर्य सम्राट अशोक (तत्कालीन राज्यपाल विदिशा) को है जिन्होंने अपनी विदिशा निवासी रानी की इच्छानुसार साँची की पहाड़ी पर स्तूप विहार एवं एकाश्म स्तम्भ का निर्माण कराया था। शुंग काल में साँची एवं उसके निकटवर्ती स्थानों पर अनेक स्मारकों का निर्माण हुआ था। इसी काल में अशोक के ईट निर्मित स्तूप को प्रस्तर खंडों से आच्छादित किया गया था।
स्तूप 2 और 3 तथा मंदिर का निर्माण शुंगकाल में ही हुआ था। भारत सरकार के पुरा- सर्वेक्षण विभाग द्वारा साँची के निकटवर्ती स्थानों पर खुदाई में साँची सदृश अन्य स्तूप श्रृंखला का पता चला है।
विशाल स्तूप क्रमांक एक:- 36.5 मीटर की परिधि तथा 16-4 मीटर की ऊंचाई वाला भव्य निर्माण प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला की अनुपम कृति हैं।स्तूप क्रमांक-दो की श्रेष्ठता उसके पाषाण-निर्मित घेरे में है। उर्द्धगोलाकार युक्त गुंबध वाले स्तूप क्रमांक-तीन का धार्मिक महत्व है। महात्मा बुद्ध के दो प्रमुख शिष्यों सारिपुत्र तथा महामौगलायन के अवशेष यहीं मिले थे।बौद्ध विहार, अशोक स्तंभ, महापात्र, गुप्तकालीन मंदिर तथा संग्रहालय यहां के अन्य दर्शनीय स्थल है।
वायु सेवा:- निकटतम हवाई अड्डा दो मार्गों से क्रमश: 46 तथा 78 कि.मी. है। यहां के लिए दिल्ली, मुंबई, ग्वालियर और इंदौर से विमान सेवा उपलब्ध है।
रेल सेवाएं:- सांची मध्य रेलवे की झांसी-इटारसी खंड पर स्थित हैं लेकिन सांची से 10 कि.मी. दूर स्थित विदिशा सुविधाजनक स्टेशन है।
सड़क मार्ग:- सांची आने-जाने के लिए भोपाल, इंदौर, सागर, ग्वालियर, विदिशा और रायसेन आदि से बस-सेवा उपलब्ध है।
ठहरने के स्थान:- म.प्र. पर्यटन विकास निगम का लॉज, कैफेटेरिया, सरकारी डाक बंगला तथा बौद्ध धर्मशाला यहां है।