अम्बिकापुर..(उदयपुर/क्रांति रावत).. लोगों की सुरक्षा की चिंता किसे है.. और हां.. कौन डरता है कोरोना से.. एक ओर जहां पूरा देश कोरोना को लेकर सतर्क है.. और घरों से नहीं निकल रहे हैं. वहीं अदानी कम्पनी द्वारा संचालित कोयला खदान में जनता कर्फ्यू के दिन रविवार की वजह से ऑफिस तो बन्द रहा. पर खदान में काम जारी था. सोमवार को भी खदान में कोयला लोडिंग तथा कर्मचारियों का स्टॉफ बसों में आना जाना जारी था. कम्पनी के ज्यादातर वर्कर बाहर से आकर खदान में काम कर रहे है.. और बाहर प्रदेशों से लोगों का आना जाना जारी रहता है. इनकी भी जाँच होनी चाहिए. इनकी वजह से सरगुजा जिले के उदयपुर ब्लॉक में गम्भीर समस्या उत्पन्न होने की आशंका है.
• धारा 144 की उड़ रही धज्जियाँ
परसा ईस्ट एवं केते बांसेन कॉल परियोजना के लिए संचालित स्टाफ बसों का संचालन धड़ल्ले से नियम विरुद्ध तरीके से जारी है. बसों में एक साथ 20 से 30 लोग सवार होकर अम्बिकापुर से परसा, उदयपुर से परसा यात्रा कर रहे हैं.. और कोल खदान में ड्यूटी के लिए लगातार जा रहे हैं. 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के दिन भी इन बसों का संचालन जारी था. सोमवार 23 मार्च को भी इनका संचालन बेरोकटोक जारी रहा.
धारा 144 कहती है एक साथ 5 लोग इकट्ठे होकर नहीं रह सकते. एक साथ आना जाना नहीं कर सकते. परंतु सारे नियमों को ताक में रखकर खदान में जाने वाले लोग अभी भी आना-जाना कर रहे हैं.. अब देखना होगा प्रशासन का ध्यान इस ओर कब जाता है.. और धारा 144 का पालन हो पाता है.. या नहीं ?
प्रशासन ने आवश्यक सेवाओं में शामिल वाहनों को छोड़कर.. जहां एक ओर यात्री बसों, टैक्सी एवं अन्य वाहनों की आवाजाही पर पूरी तरह से रोक लगा दी है. वहीं खदान में चलने वाली बसें व खदान का काम अनवरत जारी है. बाहरी लोगों के आवागमन से स्थानीय लोगों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की आशंका पर आवश्यक कार्यों को छोड़कर अन्य कार्यों तथा बाहरी लोगों की आवाजाही पर रोक लगाने और स्थानीय नागरिकों को तत्काल अवकाश पर भेजने की मांग करते हुए जनप्रतिनिधियों ने खान प्रबंधन को ज्ञापन सौंपा है.
ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि भविष्य में यदि कोरोना फैलता है तो इसकी समस्त जवाबदारी खान प्रबंधन की होगी. ग्रामीणों ने मांग की है की बाहर से आकर काम कर रहे लोगों की जांच भी होनी चाहिए.
इस बीच चर्चा के दौरान ग्रामीणों ने यह भी बताया कि आज का जीवन बड़ा कष्टदायी है. खदान के नाम से पेड़ काटे गए और अभी भी काटे जा रहे है. नौकरी के नाम पर स्थानीय लोगों की उपेक्षा की जा रही है. संस्कृति का विनाश लगभग हो चुका है. जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है. ब्लास्टिंग से घरों में दरार आ रहे है. अच्छा होता हमारे यहाँ खदान नही खुलता. कम से कम जल जंगल जमीन तो बची रहती.