छत्तीसगढ़ में बस्तर की क्रांति के प्रमुख सूत्रधार व ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लोगों को संगठित कर अंग्रेजों से मुकाबला करने वाले क्रांतिवीर गुण्डाधूर पर आधारित राज्य की झांकी इस बार के गणतंत्र दिवस पर देश और विदेश के लाखों दर्शकों के बीच राजधानी नई दिल्ली के राजपथ पर छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व करेगी। रक्षा मंत्रालय की उच्च स्तरीय समिति ने राज्य के जनसंपर्क विभाग द्वारा प्रस्तुत गुण्डाधुर पर आधारित झांकी के प्रस्ताव को अपनी अंतिम स्वीकृति प्रदान कर दी है। छत्तीसगढ़ की यह प्रस्तुति गत चार माह से चल रही गहन चयन प्रक्रिया के बाद थीम, डिजाईन, त्रिआयामी मॉडल और संगीत की कसौटियों पर खरी उतरी। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने छत्तीसगढ़ की जनता को इस सफलता पर बधाई दी है। उन्होंने कहा कि यह राज्य के लिए गौरव की बात है।
जनसंपर्क विभाग के सचिव श्री अमन कुमार सिंह ने बताया कि जनसंपर्क विभाग ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय अंचल के अनेक गुमनाम क्रांतिवीरों में बस्तर के श्री गुण्डाधूर के चमत्कारिक चरित्र बारे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोगो को जागृत करने के उद्देश्य से इसे थीम के रूप में प्रस्तुत किया था। झांकी के माध्यम से यह बताया गया है कि, किस प्रकार आदिवासी अंचल बस्तर के लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ संगठित होकर उनसे लोहा लिया। उन्होंने बताया कि 28 राज्यों और मंत्रालयों की प्रस्तुति के बीच कड़ी प्रतियोगिता के बाद छत्तीसगढ़ की झांकी का चयन किया गया है। चयनित अन्य राज्यों में अरूणाचल प्रदेश, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर, मेधालय, राजस्थान, तमिलनाडू, असम, उŸार प्रदेश, उŸाराखंड, चण्डीगढ़, व पश्चिम बंगाल शामिल है। चयन समिति के सदस्यों में देश के ख्यातिनाम शिल्पज्ञ, पेंटर, वास्तुविद, रंगकर्मी, संगीतकार और कला विशेषज्ञ शामिल थे। उन्होंने बताया कि जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने इसके लिए पिछले चार माह से काफी परिश्रम किया है। कड़ी प्रतियोगिता के बावजूद राज्य की झांकी को लगातार गणतंत्र दिवस पर राजपथ पर प्रदर्शन के लिए चयनित किया जाता रहा है। पिछले सात वर्षो में छŸाीसगढ़ की झांकी को तीन पुरस्कार प्राप्त हो चुका हैै। राज्य के परम्परागत आभूषणों पर आधारित झांकी को वर्ष 2006 में प्रथम और कोटमसर गुफा पर आधारित झाांकी को वर्ष 2010 में तृतीय पुरस्कार व वर्ष 2013 में छŸाीसगढ़ की सांस्कृतिक समृद्धता और धार्मिक सहिष्णुता पर आधारित सिरपुर की झांकी को भी तृतीय पुरस्कार प्राप्त करने का सम्मान प्राप्त हो चुका है।
जनसंपर्क विभाग के संचालक श्री ओ.पी. चौधरी ने बताया कि गुण्डाधूर की झांकी में गुण्डाधूर के व्यक्तिव के साथ-साथ बस्तर में अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासियों द्वारा उनसे डटकर मुकाबला करने व आदिवासी अंचलों में लोगों की देशभक्ति की जागरूकता को इस झांकी में बताया गया है। उन्होंने बताया कि, गुण्डाधूर एक महान सेनानी, कुशल छापामार योद्धा तथा देशभक्त, सत्यवादी और पराक्रमी होने के साथ-साथ आदिवासियों के पारंपरिक हितों के लिए जागरूक थे। जनश्रुतियों तथा गीतों में आपकी वीरता का वर्णन मिलता है। गुण्डाधूर के त्याग और बलिदान स्मरणीय तथा प्रेरणादायक है। छŸाीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में साहसिक कार्य तथा खेल के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए गुण्डाधूर सम्मान स्थापित किया है। जनसंपर्क विभाग के सचिव अमन कुमार सिंह और संचालक श्री ओ.पी. चौधरी ने इस सफलता के लिए बधाई दी है।
क्रांतिवीर गुण्डाधूर
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय अंचल के अनेक गुमनाम क्रांतिवीरों में बस्तर के गुण्डाधूर एक चमत्कारिक चरित्र हैं। इनका जन्म आदिवासी बस्तर के नेतानार ग्राम में हुआ था। घुरवा जाति का यह वीर युवक सन 1910 के आदिवासी क्रांति का प्रमुख सूत्रधार थे। इस समय अंग्रेजो के कुटिल शासन के प्रति जनआक्रोश बस्तर में क्रांति के रूप में प्रकट हुआ। सन 1909 में बस्तर की जनता ने इन्द्रावती नदी के तट पर एकत्र हुए और सर्वसम्मति से गंडाधूर को आन्दौलन का नेता चुना गया। निडर, सत्यवादी और पराक्रमी थे। एक फरवरी 1910 को समूचे बस्तर में क्रांति का भूचाल आ गया।
गुण्डाधूर ने सर्वश्री मूरतसिंह बख्शी, बालाप्रसाद नाजिर, वीरसिंह बंदार और लाल कालिन्द्री सिंह के सहयोग से क्रांति का कुशल संचालक किया। क्रांति का संदेश गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए आम की टहनियों में डारामिरी (लालमिर्ची) बांधकर भेजा जाता था। यह उनके क्रांति की पहचान थी। क्रांति में सबसे पहले अंग्रेजों के संचार-तंत्र को नष्ट करना था। रायपुर से मेजर गया और डी ब्रेट को बस्तर भेजकर अंग्रेजों ने क्रूतापूर्वक गांवों को जलाने के साथ-साथ अनेक निरपराध लोगों को फांसी पर लटकाया। अंग्रेजों की बंदूकों को सामना क्रांतिकारियों अपने परामपरागत हथियार तीरकमान , भाले, फरसे और टंगिया (कुल्हाड़ी) से किया। एक बार गुण्डाधूर ने अपने सैकड़ों साथियों के साथ मेजर गेयर को घेर लिया और अंग्रेज आत्म सर्मपण के लिए तैयार हो गए।
गुण्डाधूर ने पुनः अपने सहयोगियों को एकत्रित कर ग्राम अलनार में अंग्रेजों से मुकाबला किया लेकिन एक बार एक विश्वासघाती ने अपने साथियों को बेसुध कर उसकी जनकारी अंग्रेजो को दे दी। गुण्डाधूर सैनिकों की बंदूकों का सामना करते हुए बच निकले। गुण्डाधूर के त्याग और बलिदान स्मरणीय तथा प्रेरणादायक है। जनश्रुतियों तथा गीतों में भी गुण्डाधूर की वीरता का वर्णन मिलता है।