नई दिल्ली। अन्ना हजारे जनलोकपाल की मांग को लेकर एक बार फिर अनिश्चितकालीन अनशन पर हैं। इस बार उनका अनशन उनके गांव रालेगण सिद्धि में चल रहा है। अन्ना के अनशन के पहले दिन उनके गांव और आसपास के गांवों से तकरीबन पांच हजार लोग जुटे। हालांकि डॉक्टरों ने अन्ना को 72 घंटे से ज्यादा अनशन ना करने की हिदायत दी है। लेकिन अन्ना का कहना है कि जब तक सरकार लोकपाल बिल नहीं लाएगी उनका अनशन जारी रहेगा।
रालेगन सिद्धि से जनलोकपाल के लिए अन्ना एक बार फिर गरज रहे हैं। ये अलग बात है कि अब उनके साथ ना अरविंद केजरीवाल हैं ना उनकी टीम। अनशन के पहले दिन हजारों लोग अन्ना के समर्थन में नजर आएं। कुछ उनके गांव के थे। कुछ आसपास के गावों के तो कुछ दूसरे राज्यों से भी आए थे। अन्ना इस बार ये अनशन अपने नए संगठन जनतंत्र मोर्चा के बैनर तले कर रहे हैं। मंगलवार सुबह उन्होंने वालों के साथ प्रभात फेरी निकाली और तकरीबन 9 बजे यादवबाबा मंदिर के पास अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठ गए।
अन्ना पिछले दो साल से जनलोकपाल की लड़ाई लड़ रहे हैं। 2011 के अगस्त और दिसंबर महीने में अन्ना के आंदोलन को देश भर में बड़ा जनसमर्थन हासिल हुआ। सरकार पर इतना दबाव बढ़ा कि वो अन्ना की मांगों पर विचार करने के लिए मजबूर हो गई। अनशन और आंदोलन खत्म करने के लिए अन्ना ने सरकार के सामने तीन शर्तें रखी थी।
1. निचले स्तर के सरकारी कर्मचारियों लोकपाल के दायरे में लाए जाएं।
2. सरकारी विभागों में सिटिजन चार्टर लागू हो।
3. लोकपाल बिल के तहत सभी राज्यों में लोकायुक्त नियुक्त हो।
सरकार की पहल पर संसद ने अन्ना की इन तीन शर्तों पर सहमति जताई और 28 अगस्त, 2011 को अन्ना ने अपना अनशन खत्म करने का ऐलान किया। लेकिन सरकार से निराश होकर दिसंबर महीने में एक बार फिर अन्ना ने अनशन शुरू किया। हालांकि सेहत के चलते उन्हें अनशन छोड़ना पड़ा। बाद में उनकी जगह केजरीवाल अनशन पर बैठे। लेकिन फिर राजनीतिक दल के निर्माण को लेकर टीम अन्ना अरविंद के नेतृत्व में अन्ना से अलग हो गई। हालांकि वो टीम एक बार फिर लोगों से अन्ना से जुड़ने की अपील कर रही है।
वैसे अब केंद्र सरकार एक बार फिर वादा कर रही है कि वो संसद के इस सत्र में लोकपाल बिल पास कराने की कोशिश करेगी। सरकार के इस बिल में सीबीआई को लोकपाल से बाहर रखा गया है। सिटिजन चार्टर पर सरकार से अलग बिल ला चुकी है। इसके अलावा प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में सशर्त रखा गया है। लोकपाल चयन कमेटी में पांचवें सदस्य को चुनने का अधिकार सरकार के पास नहीं होगा। एक साल के भीतर सभी राज्यों में लोकायुक्त का गठन जैसी कई सिफारिशें मानी गई हैं।
लेकिन क्या सरकार का ये बिल इस काबिल होगा कि वो अन्ना की मांगों को संतुष्ट कर सके। फिलहाल तो अन्ना एक बार फिर सरकार से आरपार के मूड में हैं। उनके समर्थन में मुंबई के आजाद मैदान और दिल्ली के जंतर मंतर पर लोगों की भीड़ जुटी। वैसे पुरानी टीम हो या ना हो, जनसमर्थन मिले या ना मिले। लेकिन फिलहाल अन्ना ने सरकार पर नैतिक दबाव तो बढ़ा ही दिया है।