सुविधाहीन स्कूलों में क्यों और कैसे सुने प्रधानमंत्री का भाषण
राज्य के षिक्षा विभाग द्वारा षिक्षक दिवस के दिन स्कूली बच्चों को प्रधानमंत्री का भाषण अनिवार्य सुनाये जाने का तुगलकी फरमान जारी किया जाना आपत्तिजनक है। प्रदेष कांग्रेस प्रवक्ता सुषील आनंद शुक्ला ने कहा कि राज्य बनने के लगभग डेढ़ दषक बाद जिस प्रदेष के विद्यालयों में मूलभूत सुविधाओं का आभाव हो वहां पर नेता विषेष के भाषण सुनने के लिये दबाव बनाया जाना कहां तक न्याय संगत है। दुर्भाग्यजनक है कि प्रदेष के लगभग 1500 प्राथमिक विद्यालय 970 पूर्व विद्यालय भवन विहीन है। प्रदेष के लगभग 4000 से अधिक विद्यालयों में तो बिजली, पानी और शौचालय की व्यवस्था नहीं है। छत से टपकती पानी की बूंदों के बीच में कैसे बच्चे प्रधानमंत्री के आत्म प्रचार को सुनेंगे। ऐसे में षिक्षक बच्चों को कैसे और क्यों अनिवार्य रूप से प्रधानमंत्री के भाषण सुनवायें? देष के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधा कृष्णन के जन्म दिवस को षिक्षक दिवस के रूप में मनाने का निर्णय राष्ट्र के भविष्य निर्माता गुरूजनों को सम्मान देने के लिये लिया गया था। प्रधानमंत्री के भाषण के नाम पर उन्हीं षिक्षकों की अनदेखी की जा रही है। षिक्षक सम्मान समारोह स्थगित किये जा रहे हैं षिक्षकों को प्रधानमंत्री के भाषण सुनवाने की व्यवस्था करने के लिये प्रताडि़त किया जा रहा है। उन पर दबाव बनाया जा रहा है। षिक्षक दिवस के दिन षिक्षकों का सम्मान सर्वोपरि है। सिर्फ सस्ता प्रचार पाने के उद्देष्य से देष के प्रधानमंत्री के द्वारा बच्चों को दबावपूर्वक अपना संबोधन सुनने को बाध्य किया जाना और प्रधानमंत्री की प्रचार पाने की इच्छा की पूर्ति के लिये राज्य सरकार के द्वारा षिक्षकों को प्रताडि़त किया जाना निंदनीय है। प्रधानमंत्री बच्चों को संबोधित करें। इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन बच्चों को जबरिया भाषण सुनाया जाना न सिर्फ आपत्तिजनक है यह मासूमों को मानसिक प्रताड़ना भी है। जो स्वेच्छा से सुनना चाहते हैं वे सहर्ष सुने जो बच्चे नहीं सुनना चाहते उन्हें इसके लिये बाध्य किया जाना तानाषाहीपूर्ण कदम है।