विश्वकर्मा पूजा आज, जानिए पूजा विधि, महत्व और कथा

फ़टाफ़ट डेस्क। इंजीनियरिंग और कला के देवता भगवान विश्वकर्मा जयंती के मौके पर आज देशभर में विश्वकर्मा पूजा की जाएगी। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को विश्वकर्मा पूजा का त्योहार मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन ही ऋषि विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। इस साल विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर 20217 को जाएगी। आज के दिन इंजीनियरिंग संस्थानों व फैक्ट्रियों, कल-कारखानों व औजारों की पूजा की जाती है।

विश्वकर्मा पूजा विधि:

आज के दिन ऑफिस, फैक्ट्री, वर्कशॉप, दुकान आदि के मालिक सुबह स्नान आदि करके भगवान की विश्वकर्मा की प्रतिमा व यंत्रों व औजारों की विधिपूर्वक पूजा करते हैं। जानिए पूजा विधि:- पूजा शुरू करने से पहले पूजा स्थल पूजा चौकी पर भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा स्थापित करें। अब कलश को हल्दी और चावल के साथ रक्षासूत्र चढ़ाएं, इसके बाद पूजा मंत्र  ‘ॐ आधार शक्तपे नम: और ॐ कूमयि नम:’, ‘ॐ अनन्तम नम:’, ‘पृथिव्यै नम:’ का जप करना चाहिए।

अब जिन चीजों की पूजा करनी है, उनपर हल्दी अक्षत और रोली लगाएं. अब भगवान विश्वकर्मा को अक्षत, फूल, चंदन, धूप, अगरबत्ती, दही, रोली, सुपारी, रक्षा सूत्र, मिठाई, फल आदि अर्पित करें। धूप दीप से आरती करें। ये सारी चीजें उन हथियारों पर भी चढ़ाएं जिनकी पूजा करनी है। पूजा के अंत में भगवान विश्वकर्मा को प्रणाम करें और लोगों को प्रसाद बांटें।

विश्वकर्मा पूजा का समय-

17 सितंबर को सुबह छह बजकर 7 मिनट से 18 सितंबर सुबह तीन बजकर 36 मिनट तक योग रहेगा। 17 को राहुकाल प्रात: दस बजकर 30 मिनट से 12 बजे के बीच होने से इस समय पूजा निषिद्ध है। 

विश्वकर्मा पूजा की कथा और महत्व-

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सृष्टि को संवारने की जिम्मेदारी ब्रह्मा जी ने भगवान विश्वकर्मा को सौंपी थी। ब्रह्मा जी को अपने वंशज और भगवान विश्वकर्मा की कला पर पूर्ण विश्वास था। जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया तो वह एक विशालकाय अंडे के आकार की थी। उस अंडे से ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई। कहते हैं कि बाद में ब्रह्माजी ने इसे शेषनाग की जीभ पर रख दिया।

शेषनाग के हिलने से सृष्टि को नुकसान होता था। इस बात से परेशान होकर ब्रह्माजी ने भगवान विश्वकर्मा से इसका उपाय पूछा। भगवान विश्वकर्मा ने मेरू पर्वत को जल में रखवा कर सृष्टि को स्थिर कर दिया। भगवान विश्वकर्मा की निर्माण क्षमता और शिल्पकला से ब्रह्माजी बेहद प्रभावित हुए। तभी से भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का पहला इंजीनियर और वास्तुकार मनाते हैं। भगवान विश्वकर्मा की छोटी-छोटी दुकानों में भी पूजा की जाती है।