नवरात्रि के पांचवे दिन होती है मां स्कंदमाता की पूजा.. जानिए क्या है पूजा विधि, मंत्र और कथा

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स्‍कंदमाता प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं की सेनापति बनी थीं जिस वजह से पुराणों में कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है।

स्कंदमाता की उपासना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। देवी की पूजा करने से संतान प्राप्ति के योग भी बनते हैं।

चैत्र नवरात्रि के पांचवे दिन दुर्गा मां के स्कंदमाता रूप की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुासर, इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं देवी हैं
स्कंदमाता।

स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से भी जाना जाता है। इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है। वहीं, मान्‍यता ये भी है कि इनकी पूजा
करने से संतान योग की प्राप्‍ति होती है। जानिए नवरात्रि के पांचवे दिन की पूजा विधि, व्रत कथा, आरती, मंत्र, मुहूर्त…

*पूजा विधि:नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा करने से मिलता है संतान सुख*
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भगवान कार्तिकेय की माता होने से स्कंदमाता के रूप में की जाती है देवी दुर्गा की पूजा।

नवरात्रि के पांचवे दिन देवी के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा की
जाती है। जो कि इस बार २१ अक्टूबर, २०२० बुधवार को होगी। स्कंदमाता हिमायल की पुत्री पार्वती
ही हैं। इन्हें गौरी भी कहा जाता है। भगवान स्कंद को कुमार कार्तिकेय के नाम से जाना जाता है और ये देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति थे। इनकी मां देवी दुर्गा थीं और इसी वजह से मां दुर्गा के स्वरूप को स्कंदमाता भी कहा जाता है। मान्यता है कि जिस भी साधक पर स्कंदमाता की कृपा होती है उसके मन और मस्तिष्क में अपूर्व ज्ञान की उत्पत्ति होती है।

*पूजा विधि*
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नवरात्रि के पांचवें दिन सबसे पहले स्‍नान करें और स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें। अब घर के मंदिर या पूजा स्‍थान में चौकी पर स्‍कंदमाता की तस्‍वीर या प्रतिमा स्‍थापित करें। गंगाजल से शुद्धिकरण करें फिर एक कलश में पानी लेकर उसमें कुछ सिक्‍के डालें और उसे चौकी पर रखें। अब पूजा का संकल्‍प लें। इसके बाद स्‍कंदमाता को रोली-कुमकुम लगाएं और नैवेद्य अर्पित करें। अब धूप-दीपक से मां की आरती उतारें और आरती के बाद घर के सभी लोगों को प्रसाद बांटें और आप भी ग्रहण करें। स्‍कंद माता को सफेद रंग पसंद है इसलिए आप सफेद रंग के कपड़े पहनकर मां को केले का भोग लगाएं। मान्‍यता है क‍ि ऐसा करने से मां निरोगी रहने का आशीर्वाद देती हैं।

*ध्यान:*
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वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा
स्कन्दमाता यशस्वनीम्।।
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों
पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण
उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वांधरा
कांत कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीया लावण्या चारू
त्रिवली नितम्बनीम्॥

*स्कंदमाता की पूजन विधि*
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देवी स्कंदमाता की पूजा के लिए पूजा स्थल, जहां पर कलश स्थापना की हुई है, वहां पर स्कंदमाता की मूर्ति या तस्वीर की स्थापना करें और उन्हें फल चढ़ाएं, फूल चढ़ाए, धूप-दीप जलाएं।

माना जाता है कि पंचोपचार विधि से देवी स्कंदमाता की पूजा करना बहुत शुभ होता है।

बाकी पूजा प्रक्रिया वैसी ही जैसी ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा और बाकी देवियों की है।

*स्कंदमाता पूजा मंत्र* 
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या देवी सर्वभू‍तेषु स्कंदमाता
रूपेण संस्थिता. 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नम: ।।

माना जाता है कि स्कंदमाता की पूजा करने से बाल रूप स्कंद कुमार की पूजा पूरी मानी जाती है।

देवी स्कंदमाता की पूजा करते वक्त नारंगी रंग के वस्त्र धारण करें और नारंगी रंग के कपड़ों और श्रृंगार सामग्री से ही देवी को सजाएं। इस रंग को ताजगी का प्रतीक भी माना जाता है।

देवी अपने इस रूप में यानि स्कंद माता के रूप में अपने भक्तों की सभी इच्छाओं की पूर्ति करती है इसलिए भक्त जो चाहें उनसे मांग सकते हैं।

*स्कंदमाता के लिए नैवेद्य*
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स्कंदमाता को केले प्रिय हैं इसलिए उन्हें केले का भोग लगाएं और बाद में इस भोग को ब्राह्मण को दे दें। ऐसा करने से साधक का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। इसके साथ ही खीर और सूखे मेवे का भी नैवेद्य लगाया जा सकता है।

*देवी के इस रूप का महत्व*
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स्कंदमाता शेर की सवारी करती हैं जो क्रोध का प्रतीक है और उनकी गोद में पुत्र रूप में भगवान कार्तिकेय हैं, पुत्र मोह का प्रतीक है।

देवी का ये रूप हमें सीखाता है कि जब हम ईश्वर को पाने के लिए भक्ति के मार्ग पर चलते हैं तो क्रोध पर हमारा पूरा नियंत्रण होना चाहिए, जिस प्रकार देवी शेर को अपने काबू में रखती है।

पुत्र मोह का प्रतीक है, देवी सीखाती हैं कि सांसारिक मोह-माया में रहते हुए भी भक्ति के मार्ग पर चला जा सकता है, इसके लिए मन में दृढ़ विश्वास होना जरूरी है।

देवी स्कंदमाता की पूजा करने से संतान सुख मिलता है। बुद्धि और चेतना बढ़ती है। कहा गया है कि देवी स्कंदमाता की कृपा से ही कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत जैसी रचनाएं हुई।

*स्तोत्र पाठ*
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नमामि स्कन्दमाता
स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागररमपारपार
गहराम्॥
शिवाप्रभा समुज्वलां
स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां
जगत्प्रीन्तिभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चिता
सनंतकुमाररसस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता
यथार्थनिर्मलादभुताम्॥
अतर्क्यरोचिरूविजां
विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तता
विशेषतत्वमुचिताम्॥
नानालंकार भूषितां
मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां
त्रिवेन्दमारभुषताम्॥
सुधार्मिकौपकारिणी
सुरेन्द्रकौरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनी
सुकर्णकल्पशाखिनीम्॥
तमोन्धकारयामिनी
शिवस्वभाव कामिनीम्।
सहस्त्र्सूर्यराजिका
धनज्ज्योगकारिकाम्॥
सुशुध्द काल कन्दला
सुभडवृन्दमजुल्लाम्।
प्रजायिनी प्रजावति
नमामि मातरं सतीम्॥
स्वकर्मकारिणी गति
हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां
यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥
पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं
सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद
देवीपाहिमाम्॥

*मां स्कंदमाता की कथा:*
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कार्तिकेय को देवताओं का कुमार सेनापति भी कहा जाता है। कार्तिकेय को पुराणों में सनत-कुमार, स्कन्द कुमार आदि नामों से भी जाता है। मां अपने इस रूप में शेर पर सवार होकर अत्याचारी दानवों का संहार करती हैं। पर्वतराज की बेटी होने के कारण इन्हें पार्वती भी कहते हैं और भगवान शिव की पत्नी होने के कारण इनका एक नाम माहेश्वरी भी है। इनके गौर वर्ण के कारण इन्हें गौरी भी कहा जाता है। मां को अपने पुत्र से अधिक प्रेम है इसलिए इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है जो अपने पुत्र से अत्याधिक प्रेम करती हैं। मां कमल के पुष्प पर विराजित अभय मुद्रा में होती हैं इसलिए इन्‍हें पद्मासना देवी और विद्यावाहिनी दुर्गा भी कहा जाता है।

*सार*
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नवरात्रि की पंचमी तिथि को स्कंदमाता का पूजन किया जाता है। यह मां दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। भगवान शिव और मां पार्वती के पुत्र का नाम है स्कन्द, जिन्हें कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है। इस कारण इन्हें स्कंदमाता कहते हैं। 
 
शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व देश और दुनियाभर में मनाया जा रहा है। यह पर्व १७ अक्तूबर से शुरू हुआ था और २५ अक्तूबर को समाप्त होगा।

नवरात्रि की पंचमी तिथि को स्कंदमाता का पूजन किया जाता है। यह मां दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। भगवान शिव और मां पार्वती के पुत्र का नाम है स्कन्द, जिन्हें कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है। भगवान स्कंद को मां पार्वती ने स्वयं प्रशिक्षित किया था। उनके इसी रूप को स्कंदमाता कहते हैं। 

स्कंदमाता की पौराणिक कथा के अनुसार, यह भी कहते हैं कि एक तारकासुर नामक राक्षस था। जिसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र से ही संभव थी। तब मां पार्वती ने अपने पुत्र भगवान स्कन्द (कार्तिकेय का दूसरा नाम) को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने हेतु स्कन्द माता का रूप लिया और उन्होंने भगवान स्कन्द को युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया था। स्कंदमाता से युद्ध प्रशिक्षिण लेने के पश्चात् भगवान स्कन्द ने तारकासुर का वध किया।

*स्कंदमाता के अन्य नाम*
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कार्तिकेय को देवताओं का कुमार सेनापति भी कहा जाता है। कार्तिकेय को पुराणों में सनत-कुमार, स्कन्द कुमार आदि नामों से भी जाता है। मां अपने इस रूप में शेर पर सवार होकर अत्याचारी दानवों का संहार करती हैं। पर्वतराज की बेटी होने के कारण इन्हें पार्वती भी कहते हैं और भगवान शिव की पत्नी होने के कारण इनका एक नाम माहेश्वरी भी है। इनके गौर वर्ण के कारण इन्हें गौरी भी कहा जाता है। 

*ऐसा है स्कंदमाता का स्वरूप*
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भगवान स्कन्द बाल रूप में माता स्कन्द की गोद में विराजित हैं। माता के इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होता है। स्कंद मातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजाएं हैं, ये दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान स्कंद को गोद में पकड़े हैं और दाहिनी निचली भुजा जो ऊपर को उठी है, उसमें कमल पुष्प पकड़ा हुआ है। मां का वर्ण पूर्णत: शुभ्र है और कमल के पुष्प पर विराजित रहती हैं। इन्हें विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है।

धर्म शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि की पंचमी तिथि को स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता भक्तों को सुख-शांति प्रदान करनेा वाली हैं। देवासुर संग्राम के सेनापति भगवान स्कन्द की माता होने के कारण मां दुर्गा के पांचवे स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जानते हैं।

स्कंदमाता हमें सिखाती हैं कि जीवन स्वयं ही अच्छे-बुरे के बीच एक देवासुर संग्राम है व हम स्वयं अपने सेनापति हैं। हमें सैन्य संचालन की शक्ति मिलती रहे। इसलिए स्कंदमाता की पूजा-आराधना करनी चाहिए।इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होना चाहिए जिससे कि ध्यान वृत्ति एकाग्र हो सके। यह शक्ति परम शांति व सुख का अनुभव कराती है।

नवरात्रि के पांचवें दिन देवी स्कंदमाता की पूजा की जाती है। कहते है की इनकी कृपा दृस्टि से व्यक्ति को विद्या और ज्ञान का वरदान प्राप्त होता है. स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण ही इनका नाम स्कंदमाता पड़ा. भगवान स्कन्द देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। भगवान स्कंद माँ की गोद में बालरूप में विराजमान है. इनकी चार भुजाएं हैं और दाए हाथ में माँ पुत्र स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। माँ के एक हाथ में कमल का फूल तो दूसरे हाथ की भुजा वरमुद्रा में है. कमल के आसन पर विराजमान माँ का रंग सफ़ेद(श्वेत वर्ण) है कमल पर विराजमान होने के कारण इनका एक नाम पद्मासना भी पड़ा. सिंह इनका वाहन है ममता का प्रतीक माँ का ये रूप भक्तो को प्रेम का आशीर्वाद देता है।

*उपाय*
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पंचमी तिथि यानी नवरात्रि के पांचवे दिन माता दुर्गा को केले का भोग लगाएं व गरीबों को केले का दान करें। इससे आपके परिवार में सुख-शांति रहेगी।

*मां स्कंदमाता की आरती:*
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जय तेरी हो स्‍कंदमाता
पांचवां नाम तुम्हारा आता
सब के मन की जानन हारी
जग जननी सब की महतारी
तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं
हरदम तुम्हें ध्याता रहूं मैं
कई नामो से तुझे पुकारा
मुझे एक है तेरा सहारा
कही पहाड़ों पर है डेरा
कई शहरों में तेरा बसेरा
हर मंदिर में तेरे नजारे
गुण गाये तेरे भगत प्यारे
भगति अपनी मुझे दिला दो
शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो
इन्दर आदी देवता मिल सारे
करे पुकार तुम्हारे द्वारे
दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आये
तुम ही खंडा हाथ उठाये
दासो को सदा बचाने आई
‘चमन’ की आस पुजाने आई

*मां स्कंदमाता के मंत्र:*
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सिंहासनगता नित्यं
पद्माश्रितकरद्वया.
शुभदास्तु सदा देवी
स्कन्दमाता
यशस्विनी॥
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥

*माँ दुर्गा की आरती*
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जय अंबे गौरी, मैया
जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत,
हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ ॐ जय…

मांग सिंदूर विराजत,
टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना,
चंद्रवदन नीको ॥ ॐ जय…

कनक समान कलेवर,
रक्तांबर राजै।
रक्तपुष्प गल माला,
कंठन पर साजै ॥ ॐ जय…

केहरि वाहन राजत,
खड्ग खप्पर धारी।
सुर-नर-मुनिजन सेवत,
तिनके दुखहारी ॥ ॐ जय…

कानन कुण्डल शोभित,
नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर,
राजत सम ज्योती॥ ॐ जय…

शुंभ-निशुंभ बिदारे,
महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना,
निशदिन मदमाती॥ॐ जय…

चण्ड-मुण्ड संहारे,
शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोउ मारे,
सुर भय दूर करे॥ॐ जय…

ब्रह्माणी, रूद्राणी,
तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी,
तुम शिव पटरानी॥ॐ जय…

चौंसठ योगिनी गावत,
नृत्य करत भैंरू।
बाजत ताल मृदंगा,
अरू बाजत डमरू॥ॐ जय…

तुम ही जग की माता,
तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुख हरता,
सुख संपति करता॥ॐ जय…

भुजा चार अति शोभित,
वरमुद्रा धारी।
मनवांछित फल पावत,
सेवत नर नारी॥ॐ जय…

कंचन थाल विराजत,
अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत,
कोटि रतन ज्योती॥ॐ जय…

श्री अंबेजी की आरति,
जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी,
सुख-संपति पावे॥ॐ जय…
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ज्योतिर्विद पं० शशिकान्त पाण्डेय
9930421132/7820827200