रमनराज को आदिवासियो ने नकारा… क्या होगा आगामी पांच वर्ष

सम्पादकीय

आदिवासी बाहुल्य छत्तीसगढ मे तीसरी बार भाजपा को जनादेश मिला, और वो सरकार बना रही है। लेकिन सरगुजा और बस्तर मे सीटो का अप्रत्याशित रुप से कम होना भाजपा खेमे के साथ ही खुद रमन सिंह के लिए चिंता की बात है। पिछले दस वर्षो से आदिवासी क्षेत्रो के विकास की दर्जनो योजनाओ का क्रियान्यवयन और आदिवासी क्षेत्रो मे चौथरफा विकास 2013 के चुनावो मे कोई काम नही आया। इसकी क्या वजह है , ये तो भाजपा खेमे की गहन समीक्षा का विषय है। लेकिन ये साफ जाहिर होता है कि बस्तर मे जंहा दरभा कांड का असर रहा, वही सरगुजा के बलरामपुर, सूरजपुर, औऱ सरगुजा जिले मे भीतरघात और प्रत्याशी चयन की प्रकिया से भाजपा का सफाया हो गया है।

 रमन सिंह ने प्रदेश के मैदानी इलाको से अपनी हैट्रिक का सफर पूरा जरुर कर लिया है, लेकिन जिन आदिवासी क्षेत्रो से उनको अपनी बढता का गुमान था, उस क्षेत्र ने रमन सिंह को ठेंगा  दिखाया है। ये राजनीति है इसमे ऊंठ किस करवट बैठेगा, ये तो हमेशा मतगणना के बाद पता चलता है, लेकिन अपने धुंधाधार चुनावी प्रचार मे जिस तरह रमन सिंह ने प्रदेश के बस्तर और सरगुजा जैसे आदिवासी बाहुल्य़ क्षेत्रो मे अपनी ताकत झोंकी , वंहा परिणाम एकदम उसके विपरीत आया। जिन आदिवासी क्षेत्रो मे पिछले दस वर्षो मे रमन ने  दर्जनो शैक्षणिक संस्थान खोलवाए, और चिकित्सा के साथ सरगुजा जैसे नक्लस प्रभावित इलाको से नक्सल गतिविधियो का सफाया करने मे भी सफलता पाई, वही से उनको असफलता हाथ लगी। बलरामपुर जिले की दोनो विधानसभा क्षेत्रो से जंहा मंत्री रामविचार नेताम और संसदीय सचिव सिद्दनाथ पैकरा को करारी हार का सामना करना करना पडा  तो दूसरी ओर भटगांव और प्रेमनगस से दोनो महिला विधायक को हार का सामना करना पडा है। इतना  ही नही सरगुजा जिले की तीनो विधानसभा से भाजपा औंधो मुह गिरी और भाजयुमो प्रदेशाध्यक्ष अनुराग और विजयनाथ सिंह जैसे दिग्गज नेता कांग्रेस के सामने नही टिक सके।

रमन ने प्रदेश मे तीसरी बार भले ही अपनी सरकार बनाने की कवायद शुरु कर दी हो , लेकिन शायद तीसरी बार मुख्यमंत्री का ताज पहनने के बाद भी रमन सिंह के ये मलाल जरुर होगा कि जिस आदिवासी क्षेत्र  के लिए 10 सालो तक उन्होने विकास की नित नई गाथा रची, वंही से उनका सफाया हो गया। हांलाकि प्रत्याशी चयन के बाद से ही आम लोगो मे भाजपा विरोधी जो लहर शुरु हुई थी,, उसे प्रदेश मे कांग्रेस की सरकार बनने की हवा ने और बल दिया। सरगुजा से भाजपा के सफाया के पीछे कई प्रत्याशियो के चेहरे और भीतरघात अहम मुद्दा रहा।

खैर अब सरगुजा संभाग के कोरिया और जशपुर की 6 सीटो मे तो भाजपा ने अपना परचम लहराया है। लेकिन अविभाजित सरगुजा की आठ सीटो मे सात मे कांग्रेस की जीत ने प्रदेश के मुखिया औऱ राजनैतिक पंडितो से आंकडो को बिगाड दिया है। तो अब देखना है कि तीसरी बार मुख्यमंत्री की ताज पहनने वाले मुख्यमंत्री इस बार आदिवासी नेताओ पर कितना भरोसा करते है, और कितने आदिवासी विधायक को मंत्रीमंडल मे जगह देते है।