कोल कंपनी की मनमानी पर ग्रामीणों में आक्रोश

पुर्नवास एवं अन्य मांगों को लेकर केते बासेन में नवमें दिन भी काम बंद

अम्बिकापुर (उदयपुर से क्रांति रावत)

सरगुजा जिले के सुदूर वनांचल क्षेत्र विकास खण्ड उदयपुर अंतर्गत स्थित परसा ईस्ट एवं केते बासेन कोल परियोजना की संचालनकर्ता कंपनी अदानी की मनमानी से प्रभावित क्षेत्र के लोगों का आक्रोश फुट पड़ा है। विगत चार वर्षाें से लोग मुआवजा नौकरी और घर के लिए अपनी आवाज उठाते आ रहे है पर उनकी सुनने वाला ना तो कंपनी प्रबंधन है और ना ही प्रशासन के लोग। कंपनी के मनमाने और तानाशाही रवैये की वजह से ग्रामीणों द्वारा पूर्व के वर्षाें में खदान को कई बार बंद कराया जा चुका है। जब-जब खदान बंद हुई कंपनी और प्रशासन के लोगों की मौजूदगी में ग्रामीणों को आश्वासन दिया जाता रहा है कि आपकी मांगों को जल्द से जल्द पूरा कर दिया जायेगा। कभी एक हफ्ते तो कभी पन्द्रह दिन या अधिकतम एक से दो महीने का समय लगने की बात कहीं जाती रही है, पर ग्रामीणों की मांग आज तक पूरी नही हुई है।

इधर कई बार शिकायतों के बाद भी जनदर्षन एवं जन समस्या निवारण शिविर में आवेदन देने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं होने पर पुर्नवास, 18 वर्ष पूर्ण कर चुके युवाओं को नौकरी, बसाहट क्षेत्र के प्लाट का पट्टा, मुआवजा एवं अन्य मांगों को लेकर ग्रामीणों ने केते सरहद एवं बासेन में चल रहे कामों को बंद करा दिया है जो आज लगातार दो अप्रैल से नवमें दिन रविवार को भी बंद रहा। कोल परियोजना में प्रभावित क्षेत्र केते की पूरी बस्ती के ग्रामीणों को विस्थापित कर पुर्नवास दिया जाना है। चर्चा के दौरान आंदोलन स्थल पर उपस्थित ग्रामीणों ने बताया परियोजना आरंभ होने से पूर्व ग्राम सभा का आयोजन किया गया था जिसमें परियोजना से विस्थापित होने वाले परिवारों को पुर्नवास नीति के प्रावधानों के तहत समस्त सुविधाएं प्रदान करने के बाद ही क्षेत्र में कार्य प्रारंभ करने का प्रस्ताव पारित हुआ था। पांचवी अनुसूची में शामिल क्षेत्र में ग्राम सभा में पारित प्रस्ताव का निर्णय सर्वाेपरि होता है। परंतु ग्राम सभा में पारित निर्णय को भी दरकिनार कर क्षेत्र में मनमाने ढंग से काम किया जा रहा है। कंपनी के द्वारा केते गांव के चारो तरफ खुदाई का काम लगातार चल रहा है जिससे लोगों के साथ साथ मवेशियों का भी निस्तार मुश्किल हो गया है। गांव के लोग मिट्टी के पहाड़, धूल के गुब्बार और जलते कोयले का धुंआ और चैबीसों घंटे चलने वाले बड़ी-बड़ी वाहनों और मशीनों की कर्कश आवाज के बीच जीवन जीने को मजबूर है। ग्रामीणों का कहना है कि केते गांव से विस्थापित होने वाले समस्त परिवारों को बुनियादी सुविधाओं के साथ जब तक मकान बनाकर नहीं दिया जायेगा तब तक गांव नही छोड़ेगे सभी लोग एक साथ गांव छोड़कर बसाहट ग्राम बासेन में जाकर बसेंगे। कंपनी के द्वारा बासेन में बनवाये गये मकानों में भी कई कमियां है बनाये गये घरों के समक्ष नालियों के नाम पर केवल गडढ्ा खोदकर छोड़ दिया गया है जिसमें कभी भी गंभीर दुर्घटना होने की आशंका है। घरों तक पहुंचने के लिए सड़कों का निर्माण भी आधा अधूरा करके छोड़ दिया गया है। आंदोलन में केते सहित अन्य ग्रामीण शामिल है। काम बंद रहने से क्षेत्र में अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ है।