तीजा का उपवास, मान्यता, महत्व और शुभ मुहूर्त.. पढिए एक क्लिक मे..

आध्यात्म. हरतालिका तीज का त्योहार मे महिलाएं अपने पति के लिए काफी कठिन व्रत करती है. मान्यता है कि मां पार्वती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए 107 जन्म लिए थे. और मां पार्वती के कठोर तप से प्रभावित होकर उनके 108वें जन्म में शिव ने पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया था. उसी समय से ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से मां र्पावती प्रसन्न होकर पतियों को दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती है. इसके अलावा यह त्योहार एक बेहतर और सौभाग्य वर पाने के लिए भी रखा जाता है. अधिकांश महिलाएं इस दिन निर्जल व्रत रखती हैं तथा भगवान शिव और माता पार्वती की मिट्टी या बालू की प्रतिमा बनाकर उसकी पूजा करती हैं. पारण यानी व्रत समाप्ति के पहले पानी पीना इस व्रत में मना है. इसीलिए इस व्रत को सबसे कठिन व्रतों में गिना जाता है. हरतालिका तीज भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है. इस साल 12 सितबंर दिन बुधवार को हरतालिका तीज मनाई जा रही है.

पूजा करने का शुभ मुहूर्त

हरतालिका तीज का प्रात: काल 6.30 बजे से रात 8.35 बजे तक है। इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए किया था। इस व्रत में कुछ भी खाया-पिया नहीं जाता है। तृतीय तिथि आरंभ – 11 सितंबर 2018, मंगलवार 18:04 बजे। तृतीया तिथि समाप्त – 12 सितंबर 2018, बुधवार 16:07 बजे।

पूजन विधि

हरतालिका तीज का व्रत रखने के लिए महिलाएं सुबह-सुबह उठकर सन्ना करने के बाद एक चौकी पर रंगीन वस्त्रों के आसन बिछाकर शिव और पार्वती की मूर्तियों को स्थापित करें. अगर ऐसा संभव नहीं है तो केवल शिवलिंग की पूजा भी की जा सकती है. मंदिर जाते वक्त 16 श्रंगार का सामान ले जाना होता है. इनमें कंघी, आइना, सिंदूर, बिंदी, काली मोतियों का मंगलसुत्र, लिप्सटिक, काजल, एक दर्जन चूड़ियां, मेहंदी, नेल पॉलिस, चांदी की बिछिया, लाल वस्त्र, लाल चुनरी, भगवान शिव के लिए पीला कपड़ा, जनेऊ, कलावा शामिल हैं. ये ले जाकर मंदिर में माता पार्वती को अर्पित करना होता है.

इस व्रत का पालन करने का संकल्प लें. संकल्प करते समय अपने समस्त पापों के विनाश की प्रार्थना करते हुए कुल, कुटुम्ब एवं पुत्र पौत्रादि के कल्याण की कामना की जाती है. आरंभ में श्री गणेश का विधिवत पूजन करना चाहिए. गणेश पूजन के पश्चात् शिव-पार्वती का आवाहन, आसन, पाद्य, अघ्र्य, आचमनी, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंध, चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, दक्षिणा तथा यथाशक्ति आभूषण आदि से षोडशोपचार पूजन करना चाहिए.

पूजन की समाप्ति पर पुष्पांजलि चढ़ाकर आरती,करें. फिर कथा श्रवण करें. कथा के अंत में बांस की टोकरी या डलिया में मिष्ठान्न, वस्त्र, पकवान, सौभाग्य की सामग्री, दक्षिणा आदि रखकर आचार्य पुरोहित को दान करें. पूरे दिन और रात में जागरण करें और यथाशक्ति ओम नम: शिवाय का जप करें. दूसरे दिन और प्रात: भगवान शिव-पार्वती का व्रत का पारण करना चाहिए.