चैन सिंह अब नही होगा बेचैन..आबादी पट्टा से मिला चैन…

  • ख़त्म हुई चैन सिंह की बेचैनी
  • लोक सुराज में मिला पट्टा

कोरबा

कुछ साल पहले तक चैन सिंह इतना बैचेन और मुश्किल में नही था,जितना पिता के मौत के बाद रहने लगा। पिता के जीवित रहते उसके सिर पर घर परिवार की कोई जिम्मेदारी न थी। वह अपने माता पिता और छोटे बहनों के साथ हंसी ,खुशी रहता था।  एक दिन अचानक पिता की मौत ने चैन सिंह की न सिर्फ खुशिया छीन ली, चैन और सुकून छीनने के साथ उसकी मुश्किलांे को भी बढा दिया। पहाड़ों के बीच,जंगल में रहने वाला चैन सिंह और उसकी छोटी बहनों को यह भी नही मालूम था कि वे जिस घर में कई सालों से रहते है,उस घर का कोई पटटा भी नही बना है। एक दिन उसके विधवा मां ने चैन सिंह को उसकी जिम्मेदारी समझायी। माता नोनी बाई ने चैन सिंह को बताया कि उसके पिता ने घर के पटटे के लिये कई बार प्रयास किये लेकिन नही मिला। वे जिस घर में रहते है और जहां खेती होती है वही उसकी जीवन की पूंजी है। इस पूंजी के सहारे ही जीवनयापन करना है और तुम्हे अपनी दो छोटी बहनों की शादी भी करनी है। मा की यह बात चैन सिंह को बैचेन कर गई। खेतों में फसल उपजाने के लिये मेहनत तो करता रहा लेकिन घर का पटटा नही होने की जानकारी ने उसे चिंता में डाल दिया था। बैचेनी और मुश्किलों में दिन काट रहे चैन सिंह को जब मालूम हुआ कि छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री ने आबादी भूमि में रह रहे परिवारों को आबादी पटटा देने का बड़ा फैसला लिया है तब उसे राहत मिली,लेकिन चैन सिंह को खुशी तो उस दिन मिली जब उसे बताया गया कि उसके गांव में जिला स्तरीय लोकसुराज शिविर लगाया जा रहा है जहा उसे आबादी पट्टा निःशुल्क दिया जायेगा। आखिरकार चैन सिंह को लोकसुराज कार्यक्रम में आबादी पट्टा मिल गया। अब सिर्फ चैन सिंह ही नही उसकी मां नोनी बाई और दो बहने भी चैन से रहती है।

koraba success story-कोरबा विकासखंड के वनांचल ग्राम अजगरबहार के चैन सिंह को 7 मई को गांव में लगे लोक सुराज शिविर में आबादी पटटा प्रदान किया गया। लगभग 24 साल के चैन सिंह के पिता त्रिभुवन सिंह की मृत्यु कुछ साल पहले हो गई थी। चैन सिंह ने बताया कि अब वह अपनी माता नोनी बाई और दो बहनों के साथ रहता है। उसके पिता वर्षों से खेती करते रहे है। गांव में ही वह पैदा हुआ है। उसे माता ने जब बताया कि घर का कोई पट्टा नही है तो उसे बहुत चिंता होती थी। उसे लगता था कि इतने साल गांव में गुजारने के बाद भी जिस घर में रहते है उसका पट्टा क्यों नही बन पाया है। घर का पट्टा नही होने पर  उनका घर कभी भी तोड़ा भी जा सकता है। चैन सिंह ने बताया कि उसके उपर  अपनी माता और बहनों की जिम्मेदारी है,ऐसे में घर का पट्टा भी नही होना उसकी मुश्किलों को और भी बढ़ाता था। चैन सिंह की माता नोनी बाई ने बताया कि उसका परिवार कई पीढ़ी से ग्राम अजगरबहार रहता आया है। उसके पति ने भी घर के पट्टे के लिये कोशिश की थी। चैन सिंह और उसकी मां नोनी बाई ने आबादी पट्टा मिलने पर खुशी जताते हुये कहा कि पीढ़ियों से रहने वाले परिवारों को आबादी पट्टा देकर गांव का स्थाई रहवासी बनाने और घर का मालिकाना हक दिलाने में छत्तीसगढ़ की सरकार ने ऐतिहासिक कदम उठाया है। चैन सिंह ने कहा कि आबादी पट्टा देकर सचमुच शासन ने गरीब परिवारों को बड़ी राहत दी है। खासकर मुझ जैसे गरीब के लिये जिसके उपर मा और दो बहनों की जिम्मेदारी तो है पर सिर पर पिता का हाथ नही है ऐसे में उसके लिये आबादी पट्टा एक बड़ी पूंजी है।